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________________ नमुतुणं अर्थसदित देखाय , केम के चार ज्ञानना धणीने पण एक समय एक झाननो उप योग होय, तेवारें बीजा त्रण झाननो अनाव न होय. अहींयां घणी वक्तव्यता बे, परंतु ग्रंथगौरवना नयथी नथी लखता. हवे ए प्रकारना सर्व विशेषणोयें करी युक्त मुक्त बे. तो पण मुक्तवादी नियतस्थानस्थ, ते कहेवाता नथी त्यां कहे . ( सिव के०) शिव एटले सर्वोपावरहित बे, माटें शिव कहिये. ( मयल के) अचल एटले स्वानाविक प्रायोगिक चलन क्रिया रहित ले माटें अचल स्थिर अने अकंपित कहिये.(मरुय के०) अरुज एटले व्याधिवेदनथी रहित तथा तेना बंधनरूप शरीर अने मन नो अनाव माटें अरुज रोगरहित कहिये. (मणंत के०) अनंत एटले श्रनंत ज्ञानादिक चतुष्टयें करी युक्त ने माटें अनंत कहिये. (अरकय के०) अदय एटले सर्वकाल विनाशनो अन्नाव के निरंतर निश्चल डे माटें अक्षय कहिये. ( मवाबाह के ) अव्याबाध एटले अकर्मत्व ने माटें समस्त प्रकारें बाधारहित बे (मपुणरावित्ति के०) अपुनरावर्ति अपुनः एटले नश्री वली आवृत्ति एटले पार्बु श्रावq जेथी अर्थात् जे गतिथकी फरी संसारने विषे अवतार लेवो नथी, एवी (सिडिग के०) सिछिगति बे,(ना मधेयं के०) नाम जेनुं ए शिवमयलथी मामीने सात विशेषणसहित एवं (गणं के) स्थानकप्रत्ये (संपत्ताणं के०) संप्राप्तेन्यः एटले पाम्या बे, अर्थात् मोदनगर प्रत्ये पाम्या , एवा अरिहंत नणी (णमो के०) नमस्कार था..अहींयां वीजी वार णमो पद आव्यु ते पदें पदें नमस्कार जणाववाने अर्थे . तथा अहिं स्तुति करी बे, माटें पुनरुक्ति दोष पण नथी कारण के, सद्याय, ध्यान, तप, कायोत्सर्ग, उपदेश, स्तुति अने उत्तमना गुणनां वखाण, एटले स्थानकें पुनरुक्तिनो दोष कह्यो नथी. वली ते श्रीअरिहंत केहवा ? तो के (जिणाणं के०) अंतरंगरागादिक रिपुवर्ग प्रत्ये जीपनार तथा (जियजयाणं के०) इहलोकादिक सात नयप्रत्ये जीप नार बे, ते सात नयनां नाम कहे जे. मनुष्यने मनुष्यनुं लय, ते प्रथम श्हलोकनय जाणवू. मनुष्यने देवतादिकपु नय, ते बीजं परलोकनय जाणवू. रखे को महारं कांहिं लीये? ते त्रीजु आदाननय जाणवू, रखे महारी आजीविका हणाय? ते चोएं आजीविकाजय जाणवू. नींत प्रमुख पम्वानो शब्द सांजली बीक पामे, ते पांचमु अकस्मात् नय जाणवं. रखे ने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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