________________
ច
प्रतिक्रमण सूत्र.
धम्मदयाणं, धम्मदेसियाणं, धम्मनायगाणं धम्मसारहीणं, धम्मवरचाजरंत चक्कवट्टीणं ॥ ६॥
अर्थः- ( धम्मदयाणं के० ) धर्मदेन्यः यथायोग्य साधु श्रावक संबंधी धर्मना दातार बे. इहां धर्म एटले चारित्रधर्म ग्रहण करवो, ते बे नेदें बे. तेमां सर्वसावद्ययोग विर तिलक्षण, ते साधुनो धर्म ने देशविर तिलक्षण ते श्रावकनो धर्म, ए पण जगवानथकीज प्राप्त थाय बे यद्यपि धर्मना अन्य हेतुनो सद्भाव 'बे खरो, तथापि तेनुं प्रधानत्व जगवानने विषेज बे. केम के एनी दे शना अन्यथा होय नही, माटे धर्मद कहियें. हवे धर्मदायकपणुं तो ध मना उपदेशथकी होय, तेमाटेज श्रागल पद कहे वे के, (धम्मदे सियाणं के०) धर्मदेशकेन्यः पूर्वोक्त जेने जेवो धर्म योग्य होय, तेने तेवो साधु श्रावक संबंध धर्म तेना देशक एटले उपदेशना करनार बे. माटें धर्मदेशक कहियें. ( धम्मनायगाणं के० ) धर्म नायकेभ्यः एटले धर्मना नायक अर्थात् धर्मने वश करवाथकी तथा ते धर्मनुं फल जे अरिहंत पदवी बे, तेने जोगववा थकी अथवा कोई धर्मनो व्याघात करे, तो करवा न दीये माटें धर्मनाय क कहियें, तथा ( धम्मसारहीणं के०) धर्मसार थिन्यः धर्मना सारथि बे,
म के जेम सारथि रथस्थानी तथा रथिकनी अने अश्वोनी रक्षा करे बे, तेम श्री अरिहंत पण चारित्रधर्मनां जे अंग तेमनु रक्षण तथा उपदेश करे, जव्यजीवरूप रथसमूह तेने कुमार्गे चालवा न आपे, कुमार्गे जाता नेपाढा वाले, एक मोक्षमार्गने विषेज चलावे माटें धर्मसारथि कहियें; तथा (धम्मवरचाजरं तचक्कवहीणं के०) धर्मवरचातुरंतचक्रवर्त्तिन्यःधर्म तेज प्रधान श्रेष्ठ बे चार गतिरूप संसारना अंतनु करनार एटले मिथ्यात्वादिक जावशत्रु तेमने उच्छेद करवानुं कारण तडूप धर्मचक्रे करीने जे वर्त्ते बे, विच रेबे अर्थात् उत्कृष्टधर्म तेज चारगतिना अंत करवारूप चक्र तेणें करी स दित वर्त्ते बे, ते धर्मरचातुरंतचक्रवर्ती कहियें. एमां पूर्वोक्त उपयोग हेतु सं पदाना गुण दीपाववा निमित्तें कारण सहित स्तववा योग्यनुं स्वरूप कयुं. माटें ए बी सविशेषोपयोग हेतु संपदा जाणवी. एमां लघु उगणत्रीश, अने गुरु सात सर्व मली बत्रीश अरो बे ॥ ६ ॥
हवे यथार्थस्वरूप प्रकटार्थ देखावा रूप सातमी संपदा कहे .
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org