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जगचिंतामणि अर्थसहित. (कम्मनूमिहिं के०) ते कर्मनूमिनां जरतादिक पन्नर देत्रनेविषे (उकोसय के ) उत्कृष्टपदें ( जिणवराण के ) जिनवरो एटले जे तीर्थंकरो डे, ( पढमसंघयणि के०) प्रथम संघयण जे वज्रषजनाराच तेना धणी एवा ( सत्तरिसय के० ) सप्ततिशत एटले एकशो ने सित्तेरनो समुदाय, ( विहरंतलन के०) विचरतो लाने. ते श्रीअजितनाथनी वारें एटला लाने, वली (नवकोमी हिंकेवलिण के) केवलज्ञानी लगवाननी नव कोटि होय, तथा ( कोमिसहस्सनव के० ) नव सहस्रकोटि (साहु के०) साधु ( गम्मर के) जिनागमथकी जाणियें अने ( संपर के० ) संप्रति एटले वर्तमानकालें ( जिणवरवीस के० ) श्रीसीमंधरस्वामी प्रमुख वीश जिनवर विचरता पामियें, तथा (मुणिबिहुँको मिहिं के०) बे कोम मुनि, ( वरनाण के० ) प्रधान केवलझानना धरनार, एवा केवलज्ञानी वली ( कोमिसहस्सभ के० ) हिसहस्र कोटि ( समणह के०) श्रमण एटले साधु विचरे , ते सर्वने ( थुणिजिअ के०) थुणी, स्तवियें, (निच्च विहाणि के० ) नित्य प्रनातें सूर्योदयें निरंतर स्तवीयें ॥२॥
जयन सामी जयन सामी॥ रिसह सत्तुंजि॥ जति पढ़ नेमि जिण ॥ जयन वीर सच्चरि मंमण ॥नरु अहिं मुणि सुवय॥मुदरि पास उद उरिअखंमण॥ अवरविदेहिं तियरा॥चिहुँदिसि विदिसि जिंकेवि॥ तीआणागय संपश्य, वंदूं जिण सवेवि ॥३॥ अर्थः-हवे श्री (सत्तुं जि के०) शत्रुजय तीर्थ उपरें (सामीरिसह के०) श्री रुषलवामी (जयउ के) जयवंता वत्तों. वली (किंत के०) श्री गिर नारजी उपर (पहु के०) प्रजु एटले सामर्थ्यवाला एवा ( सामी नेमि जिण के०) स्वामी श्री नेमि जिनेश्वर ते (जयन के०) जयवंता वत्र्तों, वली (वीर के ) महावीर खामी ते ( सञ्चउरीमंमण के ) सत्यपुरी एटले साचोर नगर तेना मंगण एटले आजूषणरूप ते जयवंता वत्तॊ. वली ( जरुअहिंमुणिसुव्वय के०) श्रीजरूच नगरने विषे श्री मुनिसुव्रत नाथ अने (मुहरि के० ) मुहरिगामना नायक, ( पास के ) श्रीपार्श्वनाथ, ए जिन पंचक
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