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प्रतिक्रमण सूत्र.
तेने धर्म विषे जोडे बे ने जे जीव, धर्म पाम्या बे, तेना धर्मनी रक्षा करे बे, माटें नाथ बे. वली ( जग के० ) समस्तलोकमांडे हितोपदेश देवाकी ( गुरु के० ) महोटा बे, वली (जग के० ) षड्जीव निकायना जे ( रकण के० ) रक्षक बे, प्रतिपालक बे, वली ( जग के० ) समान बोधवंतना तथा सकल जंतुना जे (बंधव के०) महोटा विवेकवंत जाइनी पेरें जाई बे. वली ( जग के० ) मोक्षा जिलाषी साधु प्रमुखना, जे ( सब वाह के० ) सार्थवाह बे, महोटा व्यापारी बे, शा थकी ? के जे संसाररूप कांतारथकी पार पमामीने अनंत लाजनुं स्थानक, एवं जे मोहरूप नगर ते प्रत्यें पहोंचा बे. वली (जग के० ) षड्द्रव्य तथा जीवादिक नव पदा र्थना (जाव के० ) रहस्य तेने दर्शाववाने विषे जे ( विरकण के० ) वि. क्षण वे, माझा बे, अनंत ज्ञानपणामाटें विचक्षण बे. वली (श्रावय के० ) अष्टापद पर्वतनी उपर नरतेश्वरें ( संविय के० ) संस्थापित करयां बे ( रू के० ) रूप एटले विंव जेनां, वली ( कम्म विपास के० ) ज्ञाना वरणीयादिककर्मनो कीधो से विनाश जेणें, एवा ते (चडवीसं पिजि वरा के०) चोवीश जिनवर ते अपि एटले निश्वें (जयंतु के०) जयवंता वत्त, सर्व उपरें वत्तों. (अप्प हियसासण के०) अप्रतिहतशासन एटले को थी ह गाय रोकाय नही एवं जेनुं शासन वे अर्थात् शिक्षावचन रूप उपदेश बे ॥ १ ॥
कम्मभूमिदं कम्मभूमिदं ॥ पढम संघयणि ॥ नक्कोसय सत्तरि सय | जिवराण विहरंत लग्न || नव कोडीहिं केवलि ॥ कोडि सदस्स नव साहु गम्मइ ॥ संपइ जि वर वीस मुणि ॥ बिहुँ कोडिदिं वरना | समाद कोमि सहस || थुणिजि निच विहाणि ॥ २ ॥
अर्थ :- कम्म मिहिं के० ) असि, मषी, अने कृषि रूप कर्म जिहां वर्त्ते बे, एटले सि, मषी ने कृषि ए त्रण. तेमां तरवार प्रमुख शस्त्रनी ज्यां प्रवृत्ति होय, तेनेति कहियें अने लिखित प्रमुख ज्ञान ज्यां होय, तेने मषी कहियें तथा क्षेत्र, वामी प्रमुखें ज्यां जीविका होय तेने कृषि कहियें. एकरी जिहां श्राजीविका चाले बे, तेने कर्मभूमिका कहियें.
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