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________________ ४६ प्रतिक्रमण सूत्र. पुत्र हतो अने महोटी वंध्या हती, अने ते बोकरानुं प्रतिपालन बन्ने मा ताउँ करती हती,एम करतां ते वणिकें अकस्मात् काल कस्यो,तेवारें महो टी स्त्री धननी लालचें कहेवा लागी जे पुत्र महारो ने, अने जेनो पुत्र, तेनुं धन थाय. एवी चाल डे माटें धन पण महारूं , तेमज न्हानीनो तो दी करो हतोज तेथीतेणें कह्यु के पुत्र महारो अने धन पण महारुं बे. ए रीतें बन्ने शोक्योनी वढवाम थर, ते वढती वढती दरबारमा गइ, त्यां राजाथी पण चूकादो न थयो, तेवारें गर्जना माहात्म्यथकी राणीने चूका दो करवानी नली बुद्धि उत्पन्न थ. तेथी युक्ति करीने राणीयें कडं जे, बन्ने शोक्यो मलीने धन अर्को अर्थ वेंची व्यो, तथा बोकराना पण बे जाग करी अर्को अर्ड वेंची व्यो, ते सांजली न्हानी स्त्री जे सगी माता हती, ते बोली के महारे उव्य जोश्तुं नश्री अने बोकराना कांश बे जाग थाय नहीं महारे पुत्रनो तथा धननो खप नयी, एनेज सोंपो, एनो डे ते महारोज , एवं सांजली राणी बोली के ए पुत्र न्हानी स्त्रीनो बे, केम के पुत्रनुं मृत्यु थाय त्यां सुधी पण महोटी स्त्रीथी ना कहेवाणी नही अने न्हानी स्त्रीनो पुत्र बे तेथी तेणें मारवानी मना करी, माटे एने पुत्र अने धन बेहु स्वाधीन करो अने महोटी स्त्रीने धरथी बाहेर काढो. एवी न्याय करवानी बुद्धि उपनी माटें सुमतिनाम दीधुं, एमनी अयोध्या नग री, मेघरथ राजा पिता, सुमंगला राणी माता, त्रणशे धनुष्य प्रमाण शरीर, चालीश लाख पूर्व- श्रायु, सुवर्णवर्ण देह, क्रौंच लांबन. ६ हा श्रीपद्मप्रनने हुं वांडे ढुं. पद्मप्रन एटले निःकंपताने अंगीका करीने पद्मना समूह सरखी बे, प्रजा एटले कांति जेमनी तेथी पद्मप्रन कहियें, तथा गर्ने आव्या पी एमनी माताने पद्म एटले कमलनी शय्या ये शयन करवानो दोहोलो उपन्यो, ते देवतायें पूर्णकस्यो, तेना महिमाथी पद्मप्रन नाम दीधुं. तथा पद्म सरखं रक्तवणे नगवाननुं शरीर हतु, माटेप द्मप्रन कहियें. एमनी कोशंबी नगरी, धरराजा पिता, सुसीमा राणी माता, अढीशें धनुष्य शरीर, त्रीश लाख पूर्वायु, सुवर्णवर्ण देह, पद्म लांबन. सातमा श्रीसुपार्श्वनाथने हुँ वांषु . सुपार्श्व एटले रूमां ने पार्श्व जेमने तथा नगवान् गर्नगत थये बते तेमनी जननी पण सुपार्धा थ. एटले राणीनां बेहु पासां रोगें करी कोढीयां हतां, ते सुवर्णवणे घणां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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