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________________ लोगस्स अर्थसहित. ყJ सुकुमाल थयां, माटें सुपार्श्वनाम दीधुं, एमनी वाराणसी नगरी, सुप्रतिष्ठ राजा पिता, पृथ्वीराणी माता, बशें धनुष्य प्रमाण शरीर, वीश लाख पूर्व आयु, सुवर्णवर्ण देह, स्वस्तिक लांबन आठमा श्रीचंद्रप्रने हुं बांडुं हुं वली चंद्रना सरखी जेनी प्रजा चंद्रसमान वर्ण बे, तथा परमेश्वर गर्जगत थये बते एमनी माताने चंपान करवानो दोहोलो उपन्यो, ते प्रधानें बुद्धियें करी पूर्ण कस्यो, एवो प्रजाव जांण। चंद्रप्रन एवं नाम दीधुं. एमनी चंद्रपुरी नगरी, महसेन राजा पिता, लक्ष्मणा राणी माता, एकशो पच्चास धनुष्यप्रमाण शरीर, दश लाख पूर्व आयु, श्वेतवर्ण देह, चंद्र लांबन. नवमा श्री सुविधिनाथने हुं बांड इं. एटले शोजन वे विधि जेनो श्रर्थान् सर्वस्थलें वे कौशल्य जेमनुं, ते सुविधि कहियें, तथा जगवान् गर्न गत बतेज तेमनां माता, पिता, जला विधियें करी धर्ममां प्रवर्त्यां. एवो गर्जनो प्रभाव जा सुविधिनाथ नाम दीधुं वली मचकुंदना फूलनी कली सरखा उज्ज्वल प्रजुना दांत हता, माटे बीजं पुष्पदंत एवं नाम दीधुं. ऐमनी काळंदी नगरी, सुग्रीवराजा पिता, रामा राणी माता, एकशो धनुष्य प्रमाण शरीर, बे लाख पूर्व आयु, सुवर्णवर्ण देह, मगरमत्स्य लांबन, १० दशमा श्रीशीतलनाथने हुं वांडु ढुं, समस्त जीवोना संतापने हरण करे बे, माटे शीतलनाथ तथा जगवानना पिताने पित्तदाह रोग हतो, ते जग वान् गर्ने व्यापी राजाना शरीर उपर राणीयें हाथ फेरव्यो, तेथी रोग उपशांत थयो, शरीरें शीतलता थइ, ते माटें शीतलनाथ नाम दीधुं. एमनुं जद्दिलपुर नगर, दृढरथ राजा पिता, नंदा राणी माता, नेवुं धनुष्य प्रमाण शरीर, एक लाख पूर्व आयु, सुवर्णवर्ण देह, श्रीवत्सलांबन. ११ अगियारमा श्री श्रेयांस जिनने हुं वांडु ढुं. सर्वजगतने श्रेय एटले हितना करनार माटें तथा सकल जवनने अत्यंत प्रशंसा करवाएं बे. जेमनुं ते माटें श्रेयांस कहियें, ते पृषोदरादिकनी पेठें सिद्ध थाय बे. तथा राजाना घरमां परंपरागत देव अधिष्ठित शय्यानी पूंजा यती हती, ते शय्यायें जे बेसे, अथवा सुवे, तेने उपद्रव उपजे, ते जगवंत गर्ने याव्या पठी माताने ते शय्या उपर सूवानो दहोलो उपन्यो तेवारें विचाखुं जे देव गुरुनी प्रतिमानी पूजा थाय, परंतु शय्यानी पूजा तो क्यांहिं सांजली, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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