SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्नच्चनससिएणं अर्थसहित. ४१ U ग्गमां उगणीश दोष टालवा तेनां नाम, लक्ष्ण सहित कहियें बैयें. (१) घोमानी पेरें एक पगे शरीरनो नार यापी, बीजो पग वांको करी रहे, ( २ ) वायरे हलावेली वेलमीनी पेरें क्षरों क्ष रहुं परहुं कोले, कंप्या करे, (३) यांजाने अथवा जीतने याधारें क्यो थको काउस्सग्गे रहे, ( ४ ) उपरले माले मस्तक अमावी रहे, ( ५ ) जेम नीलमी वस्त्र रहितकाले विजागें हाथज यामो व्यापे, तेम काउस्सग्ग करतो बे हाथ गली राखे, (६) नवपरणीत वधूनी पेरें नीचु माथु करे, (७) बेी घाल्यानी पेरें पग पहोला करे अथवा वे पग मेलावी नेला करे, पण जिनमुद्रामां जेटलुं यांतरं कर्तुं बे, तेटलुं न करे. ( 6 ) नानि थकी चार अंगुल नीचें ने जानुथकी चार अंगुल उपर, चोलपट पड़े खुं कर्तुं बे तेम न करे, परंतु नाजि उपर ने जानु देवल वस्त्र पहेरी काउस्सग्ग करे ( ) मांस मशकादिकना जयथकी चोलपट्टादिकें करी हृदय ढांकीने काउस्सग्ग करे, (१०) गामांनी उंधनी पेरें पगनी वे पानी मेलवाल बे पग विस्तारी काउस्सग्ग करे, अथवा बे पगना बे अंगुठा मेलवी ने पाला पानीना जाग तरफ बेहु पग विस्तारे. ( ११ ) सं यति महासतीनी पेरें बेहु स्कंध उपरें वस्त्र उढे जे जणी काजस्गमां दक्षिणस्कंध उघामो की धो जोइयें, ते न करे, माटें ए दोष (१२) घोमा ना चोकमानी पेरें रजोहरण, यागल आऊं यापी काजस्सग्ग करे, (१३) वायसनी पेरे यांखना कोला की की थरहां परहां फेरवे, (१४) कोवनी पेरें पढेवानां वस्त्रनो एकठो पिंग करी बेहु पगनी वचालें चांपे, (१५) नूतावे शनी परें मस्तक कंपावे, (१६) मूंगानी पेरें हुं हुं करे, ( १७ ) नव कार लोगस्सनी संख्या करवाने जमुह ते पापण अथवा यांगुली हलावे, ते जमुहंगली दोष जाणवो. (१०) मदिरा पीधेलानी पेरें बम बम करतो काजस्सग्ग करे, ( १ ) अपेक्षा विना रहुं परहूं जोतो वान रनी पेठें हो वे हलावतो काउस्सग्ग करे. ए काउस्सग्गना उगणीश दोष मध्ये आठमो, नवमो, तथा अगीयारमो ए ऋण दोष महासती सा ध्वीने न लागे, केम के तेनुं वस्त्रावृत शरीर होय तेमाटे. पण एटलुं वि शेष जे साध्वी प्रतिक्रमणादि क्रिया करे तो मस्तक उघाऊं राखे, अने वधू दोष जेलीयें, तेवारें चार दोषश्राविकाने न लागे, शेष पंदर दोष ६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy