________________
५४३
स्तवनानि. शरो, तुं अवलंबन मुज प्यारो रे ॥ वाचक जस कहे माहरे, तुं जीवन जीव आधारो रे ॥ गी० ॥ ५॥ इति ॥
॥ अथ श्री समकितनुं स्तवन ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ ते मुफ मिठामि उक्कम ॥ ए देशी ॥ ॥ सांजल रे तुं प्राणीया, सदगुरु उपदेशो ॥ मानव नव दोहिलो लह्यो, उत्तमकुल एसो ॥१॥ सांग ॥ देवतत्त्व नवि उलख्यो, गुरुतत्त्व न जा एयो ॥ धर्मतत्त्व नवि सदह्यो, हियडे ज्ञान न आएयो ॥२॥ सांग ॥ मि थ्यात्वी सुर जिनप्रत्ये, सरखा करी जाण्या ॥ गुण अवगुण नवि उल ख्या, वयणे वखाएया ॥३॥ सांग ॥ देव थया मोहें ग्रह्या, पासें रहे ना री॥ कामतणे वशे जे पड्या, अवगुण अधिकारी ॥४॥ सांग ॥ केश क्रोधी देवता, वली क्रोधना वाह्या ॥ के कोईथी बीहता, हथीयार सवाह्या ॥५॥सां॥ क्रूर नजर जेहनी घj, देखंतांमरियें ॥ मुसा जेहनी एहवी, तेहथी शुं तरीयें ॥६॥ सांग ॥ पाठ करम सांकल जड्यां, नमे जवही मकारो ॥ जन्म मरण जव देखीये, पाम्या नहिं पारो ॥ ७॥ सांग ॥ देव थश् नाटक करे, नाचे जण जण आगें ॥ वेष करी राधा कृष्णनो, वली निदा मागे ॥ ७॥ सांग ॥ मुखें करी वाये वांसली, पहेरे तन वाघा ॥ जावंतां नोजन करे, एहवा चम लागा ॥ ए॥ सांग ॥ देखो दैत्य संहा. रवा, थयो उद्यमवंतो॥हरि हिरणाकश मारीयो, नरसिंह बलवंतो ॥१०॥ ॥सां॥ मत्स्य कब अवतार लश्, सहु असुर विदारया ॥ दश अवतारें जूजु था, दश दैत्य संहास्या ॥ ११॥ सांग माने मूढ मिथ्यामति, एहवा प ण देवो ॥ फरि फरि अवतार ले, देखो कर्मनी टेवो ॥ १२ ॥ सां॥ खामी सोहे जेहवो, तेहवो परिवारो ॥ एम जाणीने परिहो, जिनहर्ष विचारो ॥ १३ ॥ सांग ॥ इति ॥
॥ ढाल बीजी ॥ उधव माधवने कहेजो ॥ ए देशी ॥ ॥ जगनायक जिनराजने, दाखवियें सही देव ॥ मूकाणा जे कर्मथी, सारे सुरपति सेव ॥ १॥ ज० ॥ क्रोध मान माया नहिं, नहिं लोन अ ज्ञान ॥ रति अरति वेदे नहिं, बांड्यां मद स्थान ॥२॥ ज० ॥ निखा शोक चोरी नहिं, नहिं वयण अलीक ॥ मत्सर नय वध प्राणनो, न करे तहकीक ॥३॥ ज० ॥ प्रेमक्रीमा न करे कदी, नहिं नारी प्रसंग ॥ हा
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org