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________________ ५४२ प्रतिक्रमण सूत्र. ॥क्युंगानाग्य जुवन शशी,शुक्र संतान वसी,मेघ धुआ एक वीजली ॥अ॥ क्युंग ॥५॥ चंदिशा विपाकी, मास जुवन बाकी, जन्म दशा शनी संय मी ॥अाक्युं ॥गुरु महादशामें, केवल ज्ञान पामे, तामुख बानी मेरे दिल रमी ॥ अ० ॥ क्युं ॥६॥ थावर विगलमें, काल अनंत नमे, मेंबी नि कलीया साथमें ॥अाक्युं॥ नारक तिरि गति, सुख न एक रति काल निगमियो अनाथमें ॥ अ॥ क्युंग ॥७॥ बहोत में नाच नचे, चिढंगति चोक बिचें, नेक न मेलियें नाथ जी॥अक्युं॥ पोतप्रकाश दिये, आश निराश किये,अलग किया में आजथी ॥अक्युंगाजा मानव गण लह।, तुम सन्मुख रही, बेर बेर शिव मागते ॥अ॥ क्युंग॥ बात न उर कहुँ, लीये बिना न रहें, बाल हट्यो रस लागते ॥ अ० ॥ क्युं ॥ए ॥ नाथ् नजर करी, बेर न एक घमी, सदा मगन सुख लहेरसें ॥ अक्युं ॥ मं गल तुरवरा, गावत अपरा, श्री शुलवीर प्रनु महेरसें ॥अक्युं ॥१॥ ॥ अथ श्री सिद्धनगवान- स्तवन ॥ ॥ सिझनी शोना रे शी कहुं ॥ए आंकणी ॥ सिद्ध जगत शिर शोजता रमता आतमरामलक्ष्मी लीलानी लहेरमां, सुखीया ने शिव गम ॥ सिण॥ ॥१॥ महानंद अमृतपद नमो, सिद्धिकैवल्य नाम ॥ अपुनर्जव ब्रह्मपद वली, अदय सुख विशराम ॥ सि ॥२॥ संश्रेय निश्रेय अदरा, फुःख समस्तनी हाण ॥ निवृत्ति अपवर्गता, मोदमुक्ति निर्वाण ॥ सि ॥३॥ अचल महोदय पद लडं, जोतां जगतना गठ॥ निज निज रूपें रे जूजुश्रा, वीत्यां कर्म ते आठ ॥सि ॥४॥ अगुरु लघु अवगाहना, नामें विकसे वद न्न ॥ श्री शुनवीरने वंदतां, रहियें सुखमां मगन्न ॥ सि० ॥५॥ इति ॥ ॥ अथ वर्षमान स्वामीजी, स्तवन ॥ ॥राग धन्याश्री॥ गीरुया रे गुण तुम तणा, श्री वर्धमान जिनरायारे॥ सुणतां श्रवणें अमी करे, महारी निर्मल थाये काया रे ॥गी॥१॥ तुम गुण गण गंगाजलें, हुं कीली निर्मल थालं रे ॥ अवर'न धंघो आदरं, निशि दिन तोरा गुण गाउं रे ॥गी॥॥ जीव्या जे गंगाजलें, ते बीबरजल नवि पेसे रे ॥ जे मालतीफूलें मोहिया, ते बावल जइ नवि बेसे रे ॥ गी० ॥३॥ एम अमें तुम गुण गोग्गुं ॥ रंगें राच्या ने वली माच्या रे ॥ ते किम पर सुर आदरं, जे परनारी वश राच्या रे ॥ गी ॥४॥ तुं गति तुं मति आ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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