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स्तवनानि.
५४१ करम वश जाणो रे ॥ स ॥ कुण घुमक कुण राणो रे ॥ स० ॥॥ स० ॥ जिनवर सेवा सारो रे ॥ स ॥ विषय करो परिहारो रे ॥ स ॥ सेवा प्रबंधक नाव रे ॥ स॥ नवजल तरवा नाव रे॥ स०॥ ए॥ स॥ मणि उद्योत प्रनु साचो रे ॥ स०॥ जेहवो हीरो जाचो रे ॥ स॥ शंका मन नवि लावो रे ॥ स० ॥ शुं काजूं कहेवरावो रे॥ स० ॥१०॥ इति ॥
॥ अथ श्री दीवाली, स्तवन ॥ ॥ वादहाजीनी वाटमी अमें जोतां रे ॥ ए देशी ॥ ॥ जय जिनवर जग हितकारी रे, करे सेवा सुर अवतारी रे, गौतम पमुहा गणधारी ॥१॥ सनेही वीरजी जयकारी रे॥ अंतरंग रिपुने त्रासे रे, तप कोपाटोपें वासे रे, लडं केवल नाण उल्हासें ॥ स ॥२॥ कटि लंके वाद वदाय रे, पण जिनसाथे न घटाय रे, तेणें हरिलंबन प्रनु पाय ॥ स० ॥३॥ सवि सुरवहू थे थेश्कारा रे, जलपंकजनी परें न्यारा रे, तजी तृष्णा जोग विकारा ॥ स ॥४॥ प्रजुदेशना अमृतधारा रे, जिन धर्म विषे रथकारा रे, जेणे तास्या मेघकुमारा ॥ स ॥ ५॥ गौतमने केवल आली रे, वस्या खांतियें शिव वरमाली रे, करे उत्तम लोक दीवा ली ॥ स ॥ ६ ॥ अंतरंग अलब निवारी रे, शुन सङानने उपगारी रे, कहे वीर विनु हितकारी ॥ स० ॥ ७॥ इति समाप्तम् ॥ ॥ अथ श्रीमहावीर स्वामीनी जन्म कुंदलीनुं स्तवन ॥ देसीकेरबानी ॥
॥ सेवधी संचल घेरियां, अलबेले सांझ, क्युं रे लगा अति बेरियां ॥ ए आंकणी॥ दीये बिनां न चले. गेरु न पीछे वले, बाबत आप उबेरियां ॥ अलबे ॥ क्युं ॥जाग्य अतुल बली, मागत अटकली, जन्म बलि ग्रह चारीयां ॥ अ॥ क्युं ॥ १॥ संवत पास ईश, दो शत अडतालीश ॥ उज्ज्वल चैतर तेरशें ॥०॥ क्युं० ॥ शाठ घमी न ऊणी, उत्तराफाल गुणी, मंगल वार निशावशें ॥ अ॥ क्युं ॥२॥ सिझियोग घमी, पन्न र चारें चरी, वेला मुहर्त्त त्रेवीशमे ॥ अ० ॥ क्युं ॥ लग्न मकर वहे, खामी जनम लहे, जीव सुखी सहु ते समे॥ ॥ क्युंग॥३॥ त्रिशला राणीयें जायो, देव देवीयें गायो, सुत सिझारथ नूपको ॥ अ०॥ क्युं॥ मंगल केतु लग्ने, रवि बुध चोथे नवनें, दशमे शनिश्चर उच्चको॥षणाक्युंग ॥॥पंथमे जीव राहु, सातमे वेद साहु, केंज जुवन ग्रह मंमली ॥ अ० ॥
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