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________________ ५४४ प्रतिक्रमण सूत्र. स्यादिक अढार ए, नहिं जेहने अंग ॥४॥ ज०॥ पद्मासन पूरी करी, बेग अरिहंत ॥ निश्चल लोयण तेहनां, नासाग्र रहंत ॥५॥ ज० ॥ जिनमुना जिनराजनी, शगं परम उबास ॥ समकित थाये निर्मदुं, तपे ज्ञान उजास ॥६॥ ज० ॥ गति आ गति सहु जीवनी, देखे लोका लोक ॥ मनः पर्याय सवी तणा, केवल ज्ञान लोक ॥ ७ ॥ ज०॥ मूर्ति श्रीजिनराजनी, समतानंमार ॥ शीतल नयन सुहामणां, नहिं वांक लगा र ॥ ॥ ज० ॥ हसत वदन हरखे हैयुं, देखि श्रीजिनराय सुंदर बबि प्रजुदेहनी, शोना वरणी न जाय ॥ ए ॥ ज० ॥ अवर तण। एहवी बबि, किहां एम दीसंत ॥ देवतत्त्व ए जाणीयें, जिनहर्ष कहंत ॥१॥जण ॥ ढाल त्रीजी ॥ जत्तणीनी देशी ॥ ॥ श्री जिनवर प्रवचन नांख्या, कुगुरु तणा गुण दाख्या ॥ पासबादि, क पांचे, पाप श्रमण कह्या साचे ॥१॥ गृहीना मंदिरथी आणी, आहार करे नात पाणी ॥ सुवे जंघे निश दीस, प्रमादी विशवा वीश॥२॥ किरिया न करे किणि वार, पमिकमणुं सांऊ सवार ॥ न करे पच्चरकाण सद्याय, विकथा करतां दिन जाय ॥३॥ घृत दूध दहीं अप्रमाण, खाये न करे पञ्चरकाण ॥ ज्ञान दर्शन ने चारित्र, मूकी दीधां सुपवित्र ॥४॥ सुवि हित मुनि सामाचारी, पाले नहिं ते अणगारी॥आहारना दोष बायाल, टाले नहिं किणही काल ॥ ५ ॥ धब धब धसमसतो चाले, काचे जलें देव पखाले ॥ अर्चा रचना वंदावे, वस्त्रादिक शोना बनावे ॥६॥ परि ग्रह वली जाजा राखे, वली वली अधिकाने धाखे ॥ माठी करणी जे कहीये, ते सघनी जिणमें लहियें ॥ ७॥ एहवा जे कुगुरु आरंनी, मुनि साधु कहेवाये दंनी ॥ किश्कम्म प्रशंसा करीयें, नवनव गृहमां अवतरियें ॥ ॥ लोहानी नावा तोले, जवसायरमां जे बोले ॥ जिनहर्ष जलो अहि कालो, पण कुगुरुनी संगति टालो ॥ ए॥ ॥ ढाल चोथी ॥ कर जोमी आगल रही ॥ ए देशी ॥ ॥गुण गिरुया गुरु उलखो, हियडे सुमति विचारी रे ॥ गुरु सुपरीक्षा दो हिली, जूल पडे नर नारी रे ॥१॥गुण॥ पांच इंघिय जे वश करे, पांच महा व्रत पाले रे ॥ चार चार कषाय तजी जेणे, पांचे किरिया टाले रे॥२॥गुणा पांच समिति समिता रहे, तिन गुप्ति जे धारे रे॥दोष बहेंतालीश लीटाने, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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