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प्रतिक्रमण सूत्र. स्यादिक अढार ए, नहिं जेहने अंग ॥४॥ ज०॥ पद्मासन पूरी करी, बेग अरिहंत ॥ निश्चल लोयण तेहनां, नासाग्र रहंत ॥५॥ ज० ॥ जिनमुना जिनराजनी, शगं परम उबास ॥ समकित थाये निर्मदुं, तपे ज्ञान उजास ॥६॥ ज० ॥ गति आ गति सहु जीवनी, देखे लोका लोक ॥ मनः पर्याय सवी तणा, केवल ज्ञान लोक ॥ ७ ॥ ज०॥ मूर्ति श्रीजिनराजनी, समतानंमार ॥ शीतल नयन सुहामणां, नहिं वांक लगा र ॥ ॥ ज० ॥ हसत वदन हरखे हैयुं, देखि श्रीजिनराय सुंदर बबि प्रजुदेहनी, शोना वरणी न जाय ॥ ए ॥ ज० ॥ अवर तण। एहवी बबि, किहां एम दीसंत ॥ देवतत्त्व ए जाणीयें, जिनहर्ष कहंत ॥१॥जण
॥ ढाल त्रीजी ॥ जत्तणीनी देशी ॥ ॥ श्री जिनवर प्रवचन नांख्या, कुगुरु तणा गुण दाख्या ॥ पासबादि, क पांचे, पाप श्रमण कह्या साचे ॥१॥ गृहीना मंदिरथी आणी, आहार करे नात पाणी ॥ सुवे जंघे निश दीस, प्रमादी विशवा वीश॥२॥ किरिया न करे किणि वार, पमिकमणुं सांऊ सवार ॥ न करे पच्चरकाण सद्याय, विकथा करतां दिन जाय ॥३॥ घृत दूध दहीं अप्रमाण, खाये न करे पञ्चरकाण ॥ ज्ञान दर्शन ने चारित्र, मूकी दीधां सुपवित्र ॥४॥ सुवि हित मुनि सामाचारी, पाले नहिं ते अणगारी॥आहारना दोष बायाल, टाले नहिं किणही काल ॥ ५ ॥ धब धब धसमसतो चाले, काचे जलें देव पखाले ॥ अर्चा रचना वंदावे, वस्त्रादिक शोना बनावे ॥६॥ परि ग्रह वली जाजा राखे, वली वली अधिकाने धाखे ॥ माठी करणी जे कहीये, ते सघनी जिणमें लहियें ॥ ७॥ एहवा जे कुगुरु आरंनी, मुनि साधु कहेवाये दंनी ॥ किश्कम्म प्रशंसा करीयें, नवनव गृहमां अवतरियें ॥ ॥ लोहानी नावा तोले, जवसायरमां जे बोले ॥ जिनहर्ष जलो अहि कालो, पण कुगुरुनी संगति टालो ॥ ए॥
॥ ढाल चोथी ॥ कर जोमी आगल रही ॥ ए देशी ॥ ॥गुण गिरुया गुरु उलखो, हियडे सुमति विचारी रे ॥ गुरु सुपरीक्षा दो हिली, जूल पडे नर नारी रे ॥१॥गुण॥ पांच इंघिय जे वश करे, पांच महा व्रत पाले रे ॥ चार चार कषाय तजी जेणे, पांचे किरिया टाले रे॥२॥गुणा पांच समिति समिता रहे, तिन गुप्ति जे धारे रे॥दोष बहेंतालीश लीटाने,
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