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प्रतिक्रमण सूत्र. तादिक चउ दाहिणे जी, परिमे पउमाश् श्राप रे ॥ अनंत आदें दश उत्तरें जी, पूर्वे रिखन वीर पाठ रे ॥ च ॥४॥ रिखन अजित पूर्वे रह्या जी, ए पण आगम पाउ रे॥आत्म शक्ते करे जातरा जी,ते नवि मुक्ति वरे हणी आठ रे ॥च॥५॥ देखो अचंनो श्री सिफाचलें जी, हुवा असंख्य उझार रे ॥ आज दिने पण णें गिरि जी, जगमग चैत्य उदार रे ॥च॥ ॥६॥ रहेशे उत्सर्पिणी लगें जी, देवमहिमा गुण दाखि रे ॥ सिंह नि षद्यादिक थिरपणे जी, वसुदेव हिंमनी साख रे ॥ च ॥७॥ केवली जिन मुख में सुण्यं जी, श्णे विधे पाठ पगय रे ॥ श्री शुजवीर वचन रसें जी, गायो रिखन शिवाय रे ॥ च ॥ ॥ इति ॥
॥ अथ श्रीयाबुजीनुं स्तवन ॥ चित्त चेतो रे ॥ ए देशी ॥ आदि जिणेसर पूजतां, दुःख मेटो रे ॥ आबू गढ दृढ चित्त ॥ नवि जर नेटो रे ॥ देलवाडे देहरां नमी ॥ ७० ॥ चार परिमित नित्य ॥न ॥ ॥१॥ वीश गज बल पद्मावती ॥ दु०॥ चकेसरी अव्य आण ॥ ज० ॥ शंख दिये अंबी सुरि ॥ कु० ॥ पंच कोश वहे बाण ॥ न० ॥ २ ॥ बार पातसा फीतीने ॥ फु०॥ विमलमंत्री आह्लाद ॥ ज० ॥ अव्य नरी धरती कीयो ॥ कु० ॥ षन देव प्रसाद ॥ ॥३॥ बिहुँतर अधिकां आठशें ॥०॥ बिंब प्रमाण कहाय ॥ न० ॥ पन्नरशें कारीगरें ॥ पु० ॥ वर्ष त्रिकें ते थाय ॥ ज० ॥४॥ अव्य अनुपम खरचियुं ॥ ॥ लाख त्रेपन बार कोम ॥ ज० ॥ संवत दश अव्याशीयें ॥ कु० ॥ प्रतिष्टा करी मन होम ॥ न ॥ ५॥ देराणी जेगणीना गोखमा ॥ ७० ॥ लाख अढार प्रमाण ॥ ज० ॥ वस्तुपाल तेजपालनी ॥ 3 ॥ ए दोश् कांता जाण ॥न॥६॥ मूल नायक नेमीश्वरु । उ० ॥ चारशें अमशह बिंब ॥ ज० ॥ रूषन धातुमयी देह रे ॥ पु०॥ एकशो पीस्तालीश बिंब ॥ ज० ॥ ७॥ चौमुख चैत्य जूहारियें ॥ 5 ॥ काउस्सग्गीया गुणवंताज॥बाएं मित्त तेहमां कहुं ॥ पु०॥ अगन्यासी अरिहंत ॥ न० ॥॥ अचल गढें प्रजुजी घणा ॥3॥ यात्रा करो हुशियार ॥ना कोमित फल जे लहे ॥ कुण॥ ते प्रजु नक्ति विचार ॥ न ॥ ए ॥ सालंबन निरालंबनें ॥ कु० ॥ प्रजु ध्याने जव पार ॥ ज० ॥ मंगललीला पामियें ॥ ० ॥ वीरविजय जय कार ॥ ज०॥१०॥इति ॥
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