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स्तवनानि.
५३७ ॥अथ श्री अर्बुद गिरिनुं स्तवन ॥ ॥ चालो चालो ने राज, गिरिधर रमवा जश्य ॥ ए देशी ॥श्रावो आवो ने राज, अर्बुद गिरि जयें ॥ श्री जिनवरनी नक्ति करीने, आतम निर्मल थश्ये आणए आंकणी ॥ विमल वसहिना प्रथम जिणेसर, मुख निरखे सुख पश्ये ॥ चंपक केतकी प्रमुख कुसुमवर, कंवें टो मर वीयें ॥आ॥१॥ जमणे पासे लूणग वसहि, श्री नेमीश्वर नमीयें। राजिमती वर नयणें निरखी, फुःख दोहग सवि गमीयें ॥ आ० ॥२॥ सिकाचल श्रीषन जिनेश्वर, रेवत नेम समरीयें ॥ अर्बुद गिरिनी यात्रा करतां, चिहुं तीर्थ चित्त धरीयें। आप ॥३॥ मंगप मंगप विविध कोरणी निरखी हियडे उरीयें ॥श्रीजिनवरनां बिंब निहाली,नर नव सफलो करीयें ॥ आ ॥४॥ अविचल गढ आदीश्वर प्रणमी, अशुल कर्म सवि हरीयें। पास शांति निरखी जब नयणे, मन मोडं डंगरीये ॥ आ॥५॥ पाजें चढतां ऊजम वाधे, जेम घोडे पाखरीये ॥ सकल जिनेश्वर पूजी केसर, पाप पमल सवि हरियें।आ॥६॥एकज ध्यांने, प्रजुने ध्यातां, मनमांहें नवि मरिये ॥ ज्ञान विमल कहे प्रजु सुपसायें,सकल संघ सुख करियें ॥आणा॥
॥ अथ श्री राणकपुरजीतुं स्तवन ॥ ॥श्री राणकपुर रलीयामणुं रे ॥लाल॥श्री आदीश्वर देव ॥ मन मोह्यु रे॥ उत्तंग तोरण देहरुं रे ॥ला॥ नीरखीजें नित्यमेव ॥ म॥१॥ चउ विश मंगप चिहुं दिशें रे ॥ ला॥ चउमुख प्रतिमा चार ॥म॥ त्रिजुवन दीपक देहरुं रे ॥ला॥ समोवम नहिं संसार ॥ म॥ श्री० ॥२॥ देहरी चोराशी दीपती रे ॥ला॥मांड्यो अष्टापद मेर ॥म ॥ चलें जुहास्यां जो यरां रे ॥ ला ॥ सूता उठी सवेर ॥म ॥श्री० ॥३॥ देश जाणीतुं देहरु रे ॥ला॥ महोटो देश मेवाम ॥ म॥ लक नवाणुं लगावीयुं रे ॥ला॥ धन धरणे पोरवाम ॥ म ॥ श्री० ॥४॥ खरतर वस खांतशं रे ॥ला०॥ निरखंतां सुख थाय ॥म॥ पांच प्रासाद बीजां वलीरे ॥ला॥ जोतां पा तक जाय ॥ म ॥ श्री० ॥ ५॥ आज कृतारथ हुँ थयो रे ॥ला॥ आज थयो आनंद ॥ म ॥ यात्रा करी जिनवर तणी रे ॥ला॥ दूरे गयुं कुःख दंद ॥ म ॥ श्री॥६॥ संवत शोल ने बोतेर रे ॥ ला ॥ मागशिर मास मकारमा राणकपुरें यात्रा करी रे ॥ला॥ समयसुंदर सुखकार ॥मा॥
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