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प्रतिक्रमण सूत्र. रिया पञ्चवीश, बार अहावीश चवीश ॥ सीत्तेर गवन्न पीस्तालीश,पांच लोगस्स काउस्सग्ग रहीश, नोकरवाली वीश ॥ एक एक पढ़ें उपवासज वीश, मास खटें एक उली करीश, श्म सिझांत जगीश ॥३॥ शक्तें ए कासणुं तिविहार, ह अहम मास खमण उदार, पमिकमणां दोय वार ॥ इत्यादिक विधि गुरुगम धार, एक पद धाराधन नव पार, उजमणुं वि विध प्रकार ॥ मातंग यद करे मनोहार, देवी सिझाई शासन रखवाल, सं घविघन अपहार ॥ खिमाविजय जस ऊपर प्यार, शुन नवियण धर्मी आधार, वीरविजय जयकार ॥ ४ ॥ इति ॥
॥अथ पर्युषण स्तुति ॥ ॥ सत्तरजेदी जिनपूजा, रचीने, स्नात्र महोत्सव कीजें जी ॥ ढोल ददा मा नेरी नफेरी, जबरी नाद सुणीजें जी ॥ वीरजिन आगल नावना ना वी, मानवजव फल लीजें जी ॥ पर्व पजूसण पूर्व पुण्यें, आव्यां श्म जा णीजें जी ॥१॥ मास पास वली दसम सुवालस, चत्तारी अह कीजें जी॥ उपर वली दश दोय करीने, जिम चोवीश पूजीजें जी ॥ वडा कल्पनो बह करीने, वीर वखाण सुणीजें जी ॥ पडवेने दिन जन्म महोत्सव, धवल मं गल वरतीजें जी ॥२॥ आठ दिवस लगें अमारि पलावी, अहम, तप कीजें जी ॥ नागकेतुनी परें केवल लहीयें, जो शुलजावें रहीयें जी ॥ तेलाधर दिन त्रय कट्याणक, गणधर वाद वदीजें जी ॥ पास नेमीसर अंतर त्रीजे, षन चरित्र सुणीजें जी ॥३॥ बारशें सूत्रने सामाचारी, संवत्सरी पमिकमियें जी ॥ चैत्यप्रवामी विधिशु कीजें, सकल जंतुने खामी जें जी॥ पारणाने दिन साहम्मीवत्सल, कीजें अधिक वमाई जी॥ मानवि जय कहे सकल मनोरथ, पूरो देवी सिकाई जी ॥४॥ इति ॥
॥अथ रोहिणीतपनी स्तुति ॥ ॥ नक्षत्र रोहिणी जेदिन आवे, अहोरत पौषध करी शुन नावें, च जविहार मन लावे ॥ वासुपूज्यनी चक्ति कीजें, गणणुं पण तस नाम जपी जें, वरस सत्तावीश लीजें ॥ थोमी शक्तं वरस ते सात, जावजीव अथवा विख्यात, तप करी करो कर्म घात ॥ निजशक्ति ऊजमणुं आवे, वासुपू ज्या बिंब जरावे, लाल मणिमय गवे ॥१॥श्म अतीत अने वर्त्तमा न अनागत वंदे जिन बहुमान, कीजें तस गुण गान ॥ तपकारकनी
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