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स्तुतयः जीवदया चित्त धारो जी ॥३॥ अष्टप्रकारी पूजा करीने, मानव जवफल लीजें जी ॥ सिद्धाश् देवी जिनवर सेवी, अष्ट महासिद्धि दीजें जी॥आठ मर्नु तप करतां लीजें, निर्मल केवल ज्ञान जी ॥ धीर विमल कवि सेवक नय कहे, तपथी कोडि कल्याण जी ॥४॥ इति ॥
॥अथ एकादशीनी स्तुति ॥ ॥ एकादशी अति रूअमी, गोविंद पूजे नेम ॥ कोण कारण ए पर्व महो टुं, कहो मुझशुं तेम ॥ जिनवर कल्याणक अति घणां, एकशो ने पंचास॥ तिण कारण ए पर्व महोटुं, करो मौन उपवास ॥१॥ अगियार श्रावक तणी प्रतिमा, कहे ते जिनवर देव ॥ एकादशी एम अधिक सेवो,वनगजा जिम रेव ॥ चोवीश जिनवर सयल सुखकर, जेसा सुरतरु चंग ॥ जेम गंग निर्मल नीर जेह, करो जिनशुं रंग ॥२॥ अगीयार अंग लखावियें, अगीयार पागं सार ॥ अगियार कवली विंटणां, उवणी पूंजणी सार ॥ चाबखी चंगी विविधरंगी, शास्त्र तणे अनुसार ॥ एकादशी एम ऊजवो, जेम पामियें नवपार ॥३॥ वर कमलनयणी कमलवयणी, कमल सुकोम ल काय ॥ जुजदंड चंड अखंड जेहने, समरंतां सुख थाय ॥ एकादशी एम मन वसी, गणि हर्ष पंमित शिष्य ॥ शासनदेवी विधन निवारो, संघ तणां निश दिस ॥४॥ इति स्तुति ॥
॥अथ वीश स्थानकना तपनी स्तुति ॥ ॥प्रबे गौतम वीरजिणंदा, समवसरण बेग सुखकंदा, पूजित अमर सुरिंदा ॥ केम निकाचे पद जिनचंदा, किण विध तप करतां नवफंदा, टाले पुरितह दंदा ॥ तव नांखे प्रजुजी गतनिंदा, सुण गौतम वसुनूतिनंदा, नि मल तप अरविंदा ॥ वीश थानक तप करत महिंदा, जिम तारक समुदायें वृंदा, तिम ए सवि तप कंदा ॥१॥ प्रथम पदें अरिहंत नमीजें, बीजे सिक पवयण पद त्रीजे, आचारज थेर उवीजें ॥ उपाध्याय ने साधु ग्रही जें, नाण दंसण पद विनय वहीजें, अगीयारमे चारित्र लीजें ॥ बनवयधा रिणं गणीजें, किरियाणं तवस्स करीजें, गोयम जिणाणं लहीजें ॥ चारित्र नाण श्रुत तिबस्स कीजें, त्रीजे लव तप करत सुणीजें, ए सवि जिन तप लीजें ॥२॥ आदि नमो पद सघले ठवीश, बार पन्नर बार वली बत्रीश, दश पणवीस सगवीस ॥ पांच ने समश: तेर गणीश,सत्तर नव कि
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