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________________ एशन प्रतिक्रमण सूत्र. ज्ञान निर्वाण ॥ हुं बीजतणे दिन, प्रणमुं ते सुविहाण ॥२॥ परकाश्यो बीजें, छविध धर्म जगवंत ॥ जेम विमला कमला, विउल नयनविकसंत ॥ आगम अति अनुपम, जिहां निश्चय व्यवहार ।। बीजें सविकीजें, पातक नो परिहार ॥३॥ गजगामिनी कामिनी, कमल सुकोमल चीर ॥ चके सरी केशरी, सरस सुगंध शरीर ॥ कर जोडी बीजें, हुं प्रणमुं तस पाय ॥ एम लब्धिविजय कहे, पूरो मनोरथ माय ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥अथ पंचमीनी स्तुति ॥ ॥ श्रावण शुदि दिन पंचमी ए, जनम्या नेम जिणंद तो ॥ श्यामवर्ण तन शोजतुं ए, मुख शारदको चंद तो॥सहस वरस प्रजु आउखुं ए, ब्रह्मचा री जगवंत तो॥अष्ट करम हेलें हणी ए, पहोता मुक्ति महंत तो ॥१॥ अष्टा पद आदि जिन ए, पहोता मुक्तिमकार तो॥ वासुपूज्य चंपापुरी ए, नेम मुक्ति गिरनार तो ॥ पावापुरी नगरीमां वलि ए, श्री वीरतणुं निर्वाण तो॥ समेत शिखर वीश सिद्ध हुआ ए, शिर वहु तेहनी आण तो॥२॥ नेमनाथ झानी हुवा ए, नांखेसार वचन्न तो॥जीवदया गुणवेलमी ए, कोजें तास जत न तो।मृषान बोलो मानवी ए, चोरी चित्त निवार तो॥अनंत तीर्थंकर एम कहे ए, परहरियें परनार तो ॥३॥ गोमेद नामें यद जलो ए, देवीश्रीशं बिका नाम तो॥शासन सांनिध्य जे करे ए, करे वति धर्मनां काम तो॥त पगबनायक गुण निलो ए, श्री विजयसैन्य सुरिराय तो ॥षनदास पाय सेवतां ए, सफल करो अवतार तो ॥४॥ इति श्री पंचमीस्तुति संपूर्णा ॥ ॥ अथ अष्टमीनी स्तुति ॥ ॥ मंगल आठ करी जस पागल, नाव धरी सुरराजजी ॥ आउजातिना कलश करिने, न्हवरावे जिनराज जी॥वीर जिनेश्वर जन्म महोत्सव, कर तां शिवसुख साधे जी॥आवमनुं तप करतां अम घर,मंगल कमला वाधे जी ॥१॥ अष्ट करम वैरी गजगंजन, अष्टापदपरें बलीया जी॥आठमे आठ सुरूप विचारी, मद आठे तस गलीया जी ॥ अष्टमी गतिपरें पहोता जि नवर,फरस आउ नहिं अंग जी ॥ आठमनुं तप करतां अम घर, नित्य नित्य वाधे रंग जी ॥२॥ प्रातिहारज आठ विराजे, समवसरण जिन राजे जी॥आग्डे आठ शो आगम नांखी, नवि मन संशय लांजे जी ॥ आठे जे प्रवचननी माता, पाले निरतिचारो जी॥ आग्मने दिन अष्ट प्रकारें, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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