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स्तुतयः
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शाश्वती ज्ञाताकल्पमां, व्यवहार प्रमुखं यखी जी ॥ ते जिन प्रतिमा लोपे पापी, जिहां बहु सूत्र वे साखी जी ॥ ३ ॥ ए जिन पूजाथी आरा धक, ईशानइंद्र कहाया जी ॥ तिम सूरियान प्रमुख बहु सुरवर, देवी तणा समुदाया जी ॥ नंदीश्वर हा महोत्सव, करे अति हर्ष जराया जी ॥ जिन उत्तम कल्याणक दिवसें, पद्मविजय नमे पाया जी ॥ ४ ॥ ॥ अथ श्री सिद्धचक्रस्तुति ॥
॥ जिन शासन वंबित, पूरण देव रसाल ॥ जावें जवि जणी यें, सिद्धचक गुणमाल || त्रिहुं कालें एहनी, पूजा करे उजमाल || ते मर मर पद, सुख पामे सुविशाल ॥ १ ॥ अहंत सिद्ध वंदो, याचारिज उवसाय, मुनि दरिसण नाण, चरण तप ए समुदाय ॥ ए नवपद समुदित, सिद्धचक्र सुखदाय ॥ ए ध्यानें जविनां, जव कोटि दुःख जाय ॥२॥ यासो चैत्री मां, शुदि सातमयी सार ॥ पूनम लगें कीजें, नव बिल निरधार ॥ दोय सहस गणेयुं, पद सम सामा चार ॥ एकाशी यांबिल तप, श्रागमने अनु सार ॥ ३ ॥ सिद्धचक्रनो सेवक, श्री विमलेसर देव || श्रीपालती परें, सुख पूरे स्वयमेव ॥ दुःख दोहग नावे, जे करे एहनी सेव ॥ श्रीसुमति सुनो, राम कहे नित्यमेव ॥ ४ ॥ इति ॥
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सिद्धचक्रस्तुति ॥
॥ अरिहंत नमो वलि सिद्ध नमो, चारज वाचक साहु नमो ॥ दर्शन ज्ञान चारित्र नमो तप, ए सिद्धचक्र सदा प्रणमो ॥ १ ॥ अरिहंत अनंत या थाशे, वलि जाव निरकेपे गुण गाशे ॥ परिक्रमणां देववंदन विधिशुं
बिल तप गणुं गणो विधिशुं ॥ २ ॥ बरिपाली जे तप करशे, श्रीपाल तण परें जव तरशे ॥ सिद्धचक्रने कुण आवे तोलें, एहवा जिन आगम गुण बोले || ३ || सामाचारे वरसें तप पूरूं, ए कर्म विदारण तप शुरू || सिद्धचक मनमंदिर थापो, नयविमलेसर वर यापो ॥ ४ ॥ इति ॥
॥ अथ बीज तिथिनी स्तुति ॥
॥ दिन सकल मनोहर, वीज दिवस सु विशेष ॥ राय राणा प्रणमे, चंद्र ती ज्यां रेख || तिहां चंद्र विमानें, शाश्वत जिनवर जेह || हुं बीज तो दिन, प्रणमं णी नेह ॥ १ ॥ अजिनंदन चंदन, शीतल शीतलनाथ ॥ अरनाथ सुमति जिन, वासुपूज्य शिव साथ ॥ इत्यादिक जिनवर, जन्म
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