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प्रतिक्रमण सूत्र. पासें जी ॥१॥ बत्रीश चउसकि चउसकि मलिया, गसहि उकिका जी॥ चन अम अम मली मध्यम कालें, वीश जिनेश्वर दिका जी॥दो चउ चार जघन्य दश जंबु, धाय पुरकर मोकारें जी ॥ पूजो प्रणमो आचारांगें, प्रव चनसार उझारें जी ॥२॥ सीमंधर वर केवल पामी, जिनपद खवण निमित्तें जी ॥ अर्थ निदेशन वस्तु निवेशन, देतां सुणत विनीतें जी ॥ छा दश अंग पूरवयुत रचियां, गणधर लब्धि विकसियां जी ॥ अपडावसिय जिनागम वंदो, अदर पदना रसियां जी ॥३॥ आणारंगी समकितसंगी, विविध जंग व्रतधारी जी ॥ चनविह संघ तीरथ रखवाली, सहु उपव हरनारी जी ॥ पंचांगुली सूरि शासनदेवी, देती तस जस झकि जी ॥ श्रीशुनवीर कहे शिव साधन, कार्य सकलमां सिछि जी ॥४॥ इति ॥
॥अथ आदि जिनस्तुति प्रारंजः ॥ ॥आदि जिनवर राया, जास सोवन्न काया, मरुदेवी माया, धोरी लंबन पाया ॥ जगत स्थिति निपाया शुद्ध चारित्र पाया, केवल सिरीराया.मोद नगरें सिधाया ॥१॥ सवि जन सुखकारी, मोह मिथ्या निवारी,पुरगति पुःख जारी, शोक संताप वारी ॥श्रेणि क्षपक सुधारी, केवलानंतधारी, नमियें नर नारी, जेह विश्वोपकारी ॥२॥ समवसरण बेग, लागे जे जिन मीग, करे गणप पश्छा, चंडादि दिहा॥छादशांगी वरिहा,{ थतां टाले रिठा, नविजन होय हिका, देखि पुण्य गरिहा ॥३॥ सुर समकितवंता, जेह झळ महंता, जेह सुजनसंता, टालियें मुज चिंता ॥ जिनवर सेवंतां, विघ्न वारे पुरंता, जिन उत्तम थुणंता, पद्मनें सुख दिता ॥४॥ इति ॥
॥अथ शाश्वत जिनस्तुति ॥ ॥षन चंडानन वंदन कीजें. वारिषेण फुःख वारे जी ॥ वर्कमान जि नवर वली प्रणमो, शाश्वत नाम ए चारे जी ॥ जरतादिक क्षेत्र मली होवे, चार नाम चित्त धारे जी ॥ तेणें चार ए शाश्वत जिनवर, नमीयें नित्य सवारें जी ॥ १॥ ऊर्ध्व अधो ती लोकें थ,कोमी पन्नरशे जाणो जी॥ उपर कोमी बहेंतालीश प्रणमो, अमवन्न लख मन आणो जी ॥ त्रीश सहस एंशी ते उपर, बिंब तणो परिमाणो जी॥असंख्यात व्यंतर ज्योति षीमां, प्रणमुं ते सुविहाणो जी ॥२॥ रायपश्रेणी जीवा निगमें, जगवती सूत्रं जांखी जी॥जंबूलीपपन्नत्ती गणांगें, विवरीने घणुं दाखी जी ॥ वलीय
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