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स्तवनानि.
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नक्ति आदरीयें, साधर्मिक वली संघनी करियें, धर्म करी जव तरी यें ॥ रोग सोग रोहिणी तपें जाय, संकट टले तसु जस बहु थाय, तस सुर नर गुण गाय ॥ नीराशंस पणे तप एह, शंका रहित पणे करो तेह ॥ नवनिधि होय जिम गेह ॥ २ ॥ उपधान थानक जिनकल्याण, सिद्धचक्र शत्रुंजय जाण, पंचमी तप मन आए || पडिमातप रोहिणी सुखकार, कनकावली रत्नावली सार, मुक्तावली मनोहार ॥ श्राउम चउदश ने वर्द्धमान, इत्यादिक तपांदे प्रधान, रोहिणी तप बहु मान ॥ इणीपरें जांखे जिनवर वाणी, देशना मीठी अमिय समाणी, सूत्रे तेह गुंथाणी ॥३॥ चंमा यक्षणी यक्ष कुमार, वासुपूज्य शासन सुखकार, विघ्न मिटावन हार || रोहिणीतप क रता जिन जेह, इह जव परजव सुख लहे तेह, अनुक्रमे जवन बेह ॥ श्राचारी पंमित उपकारी, सत्य वचन जांखे सुखकारी, कपूरविजय व्रत धारी ॥ खिमा विजय शिष्य जिन गुरु राय, तस शिष्य गुरु मुऊ उत्तम याय, पद्मविजय गुण गाय ॥ ४ ॥ इति ॥
॥ अथ स्तवनोनो समुदाय लिख्यते ॥
॥ तत्र श्री सीमंधर जिन स्तवन ॥ इमर आंबा यांवली रे ॥ए देशी ॥ ॥ पुरकलव विजयें जयो रे, नयरी पुंरुरीगिणी सार ॥ श्री सीमंधर सा हिबा रे, राय श्रेयांस कुमार || जिणंदराय ॥ धरजो धर्म सनेह ॥ १ ॥ ए कणी || महोटा न्हाना अंतरो रे, गिरुया नवि दाखं ॥ शशि दरिस सायर वधे रे, कैरव वन विकसंत ॥ जि० ॥ २ ॥ ठाम कुठाम न लेखवे रे, जग वरसंत जलधार ॥ कर दोय कुसुमें वासियें रे, बाया सवि आधार ॥ जि० ॥ ३ ॥ रायने रंक सरिखा गणे रे, उद्योतें शशी सूर ॥ गंगाजल ते बिहुँ तथा रे, ताप करे सवि दूर ॥ जि० ॥ ४ ॥ सरिखा सहने तारवा रे, तिम तुमें वो महाराज ॥ मुशुं अंतर किम करो रे, बांदे यानी लाज ॥ जि० ॥ ५ ॥ मुख देखी टीलुं करे रे, ते नवि होय प्रमाण || मुजरो माने सवितो रे, साहिब तेह सुजाण ॥ जि० ॥ ॥ ६ ॥ वृषनलंबन माता. सत्यकी रे, नंदन रुकमिणी कंत ॥ वाचकजस एम वीनवे रे, जयनंजन भगवंत ॥ जि० ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ सीमंधर जिन स्तवन ॥
॥ सुणो चंदाजी, सीमंधर परमातम पासें जाजो ॥ मुज विनती, प्रेम
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