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इरियावहियं अर्थसहित. ३॥ नेद अने चार प्रकारना खेचरनो एक नेद, ए सर्व मली पांच गर्नज अने पांच संमूर्बिम मली दश नेद थाय. ए दशने पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता गणी त्यारे वीश नेद थाय- ए वीशमां पहेला अहावीश मेलवीयें, त्यारें अमतालीश थाय. ए तिर्यंचना नेद जाणवा. हवे नारकीना नेद कहे . रत्नप्रजा, शर्कराप्रना, वावुकप्रना, पंकप्रना, धूमप्रना, तमप्रजा तथा तम तमप्रजा, ए सात नरकना नारकी पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता मली चौद नेद थाय; तेमां पाबला अमतातीश मेलवियें, त्यारें बाशठ थाय. हवे मनुष्यना नेद आ प्रमाणे:-पांच जरत, पांच ऐरवत, तथा पांच महाविदेह, ए कर्मचूमिना पंदर नेद; पांच हेमवंत, पांच हिरण्यवंत, पांच हरिवर्ष, पांच रम्यक, पांच देवकुरु तथा पांच उत्तरकुरु, ए अकर्मन्नूमिना त्रीश नेद अने उपन्न अंतर छीपो कहेवाय . ए उपन्ननी साथे पेला कर्म नूमिना पंदर तथा अकर्मनूमिना त्रीश मेल वियें, त्यारे एकशो एक नेद मनुष्य जातिना थाय. एमां गर्ज़ज मनुष्यना पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता मली बशें ने बे नेद थाय. अने तेनी साथें एकशो ने एक अपर्याप्ता संमूर्बिम मनुष्यना नेद मेलवीयें, त्यारें त्रणशे ने त्रन नेद थाय. अने बाश: प्रथम तिर्यंचना कह्या, ते सर्व एका कस्याथी त्रणरों ने पांशठ नेद थाय. __ हवे देवताना एकशो ने अठाणुं नेद कहियें जैएं:-प्रथम परमाधामी ना पंदर, दश जुवनपति, आठ व्यंतर, आठ वाणव्यंतर, दश ज्योतिषी, तेमां पांच चर ने पांच स्थिर जाणवा. त्रण किदिबषिया, दश तिर्यक्रूजूंनक, पांच नरत तथा पांच ऐरवत, ए दश देवना दश वैताढ्यने विषे “अन्ने पाणे सयणे, वजे लेणयपुप्फफलपुवा ॥ बहुफल अविवत्ति जुआ, जंजगा दसविहा हुंतीति जनकाः॥१॥” नव लोकांतिक, बार देवलोकना, नव ग्रैवेयकना, पांच अनुत्तर वैमानिकना, ए सर्व मलीने नवाणुं थया. ते पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता, ए बे नेदें करतां एकशो ने अहाणुं नेद थाय. तेने पाबला त्रणशो ने पांशठमां नेलीये त्यारें पांचशो ने त्रेशठ सर्व जी वोनां उत्पत्तिस्थानक थाय. तेने 'अनिहया' इत्यादिक दश पदवडे दश गुणा करियें, त्यारें पांच हजार शें ने त्रीश थाय; ते वली राग ने वेषथी बमणा करिये, त्यारें अग्यार हजार बशें ने शाठ थाय; ते मन, वचन ने कायायें करी त्रण गुणा करिये, त्यारे तेत्रीश हजार, सातशे ने एंशी था
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