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________________ ३४ प्रतिक्रमण सूत्र. विराधना रूप अगीश्रार पदनी विराधना नामें सातमी संपदा थश्. एमां लघु अदर एकावन, गुरु अदर बबे, सर्वादर सत्तावन , हवे मिला मिछक्कम ए पदनो अदरार्थ समासें करी कहे जे. जेम केः- “मिऊ मद्दव उत्ते, बच्चिय दोसाण बायणे होश॥ मित्तिय मेराशहिजे, उत्ति पुगंबगमि अप्पा णं ॥१॥ कत्तिय कम्मे पावं, मत्तिय मवेमि तं जवसमेणं ॥ एसो मिछा उक्कम, पयकरबो समासेणं ॥२॥” अर्थः-(मिऊमदवबत्ते के०) मिकार जे जे ते मृटु सुकुमाल अहंकार रहित पणाने अर्थे ।, (बच्चियदोसाणायणे होश के०) डकार जे जे ते, दोषना गंवाने अर्थे . ( मित्तियमेराश्ही के०) मिकार जे , ते मर्यादामा रहेवाने अर्थे . (उत्तिगंगमिअप्पाणं के०) पुकार जे बे, ते पापकारि आत्माने पुगंगवाने माटे ॥१॥ (कत्तियकममे पावं के०)ककार जे बे, ते में जे पाप कीधुं तेने (मत्तियमवेमितंजवसमेणं के०) मकारें करी दडं . वालु . उपशमार्बु , (एसोमिछाकुक्कम के) ए मिला मिक्कनो (पयस्करबोसमासेणं के) पदादरार्थ, समासे करीने कह्यो. __ ए शरियावहिने सम्यक् प्रकारे मन, वचन अने कायायें करी त्रिकरणशुकै पमिकमतां मिछामि कुक्कमना देनारने कणेकमां मृगावतीनी पेरें सर्व कर्मोनो दय थाय. तिहां सर्व मली पांचशे ने त्रेशठ जातिना जीवो बे, तेनी साथें मिलामिछक्कम दश्ये, तेवारें अढार लाख, चोवीश हजार, एकशो ने वीश, एटला मिठामिछक्कम देवाय, ते आवी रीतेंः-तिहां प्रथम पांचशोने त्रेशन स्थानकें जीव उपजे , ते स्थानकोनुं विवरण करे बेः- पृथ्वीकाय, अपूकाय, तेउकाय तथा वाउकाय. ए चार स्थावरने सूक्ष्म तथा बादर करतां आप नेद थाय. अने पांचमा वनस्पतिकायना त्रण नेद बेः-एक सूक्ष्म निगोदरूप तथा बे प्रकारनी बादर, एक प्रत्येक ने बीजी साधारण, ए पांच स्थावरना मलीने अग्यार नेद थया, तथा बेइजिय, ते इजिय ने चरिंजिय, एत्रणे विकलेंजिय कहेवाय जे. ए संमूर्बिमज होय . ए त्रण पहेला अग्यारनी साथें मेलवीयें एटले चौद नेद थाय; ते चन्द पर्याप्ता तथा चउद अपर्याप्ता मली अहावीश नेद थाय. हवे पंचेंजिय ति यंचना दश नेद कहे जेः-तेमां सर्व प्रकारना मत्स्यादिक जलचरनो एक नेद, स्थलचरना त्रण नेद, तेमां एक घोमा प्र व चतुष्पाद, आशीविष प्रमुख उर परिसर्प, अने गोहप्रमुख जुजपरिसर्प ए स्थलचरना त्रण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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