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________________ ५०० प्रतिक्रमण सूत्र. दवा के०) उत्तम व्यादिक ते तिलसांकली, साकर, मेवादिकसरसोत्तम अव्य जे पूर्वे कही आव्या ते ए त्रण प्रकारनी वस्तु ते (निविगश्यंमि के) नीवीना पच्चरकाणने वीषे कोश् ( कारणजायं के ) कारणजातं एटले पुष्टालंबन वीशेष प्रयोजनरूप वातादिक कारण (मुत्तुं के) मूकीने, सा धुने (जुत्तुं के०) नोगवq लेवु ( न के) नही (कप्पंति के०) कल्पे. जेने जावजीव सुधील विगयनां पञ्चरकाण होय, किंवा तथा विध विशेष त उजमाल होय, किंवा वैयावच्च करवाने उजमाल होय, झानादिकनो उद्यमी होय, तेवारें शरीरें ग्लानादिक निमित्तें औषधादिक कारणे लेवां कल्पे, अन्यथा कारण विना लेवां कल्पे नही, (जंके०) जेमाटे (वुत्तं के०) का ले ते आगली गाथायें कहे ॥३५॥ विगविगइंनीन, विगगयं जो अ नुंजए साहू ॥ विग विगई सहावा, विगई विगई बला नेइं॥४०॥ अर्थः-(वीग के०) दूध प्रमुख जे विग ने ते प्रत्ये अने (विगगयं के) विकृति गत जे दीरादिक त्रिविध अव्य नीवीयाता कह्या ने ते प्रत्यें (विगई के) विगति एटले विरुद्धगति ते नरक, तिर्यंच, कुदेवो कुमाणसत्व रुप जे माठी गतियो ने तेनाथकी (नीउके) नीती राखतो एटले बीहीतो अथवा संयम ते गति अने तेनो प्रतिपदी जे असंयम ते विगति जाणवी. तेवी विरुकगतिथकी बीहितो एवो (जो के०) जे (अ के०) वली (साह के ) साधु ते (झुंजए के० ) मुंजे एटले खाय ते साधुने (विगई के०) विग ते ( विग के ) विगति जे नरकादिकनी विरुद्धगति तेने विषे ( बला के० ) बलात्कारें एटले ते साधु जो पण उर्गतिमां जवाने नथी वांडतो तो पण बलात्कारें तेने माठी गति प्रत्ये (नेई के०) पहोंचाडे. ते (विग के०) विग केहेवी बे? तो के (विगश्सहावा के०) विकृतिवन्नाव, एटले विकार उपजाववानो ने खनाव जेने एवी जे. केम के ए विकृत ते अवश्य शब्दादिक कामनोगने वधारे एवी डे मात्रै कारण विना विगया दिक न लेवां, अने श्रावकने पण निवी प्रमुखने पञ्चरकाणे कोश् महोटा कारण विना तथा विशेष तप विना नीविता लेवा कल्पे नहीं, एनो विस्तार श्रीआवश्यकनियुक्तिनी वृत्तिथी तथा प्रवचनसारोकारनी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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