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पच्चरकाण नाष्य अर्थसहित. नहिं, एनुं नाम उत्कृष्ट प्रव्य जाणवू. एम केटलाएक आचार्य कहे जे. नामां तरे गीतार्थानिप्रायें तो एम के जो चुल्हाना माथाथी उतस्या पली शीत थया के जे कणिकादिक देपवीये, ते तथाविध पाकालावधी विकृतिगत कहीये अन्यथा परिपक्क विशेष थये व्यगत कहीये पण विग तथा निर्विकृतिक न कहीयें एवं व्याख्यान प्रवचनसारोकारवृत्तिना अभिप्राय थी लख्युं बे, पण तिहां एम कडं ने जे सुधियें जली परें विचार,जे माटे नि विकृतिक अनेक नेदें . ते बहुश्रुतनी आचरणा परंपराथी जाणवां॥३॥ हवे केटलीएक वस्तुनां नाम उत्तम अव्य कह्यां , ते देखाडे बे. तिल सकुलि वरसोलाई, रायणंबाइ दरकवाणाई॥
मोली तिलाश्या, सरसुत्तम दव देवकडा ॥३॥ अर्थः-(तिल के ) तेलथी नीपनी एवी (सकुलि के०) तिल सांकली तथा खारेक, टोपरां, सिंगोमां प्रमुख नाहोलाना हारमा तेने (वरसोलाई के) वरसोलां कहीयें अने आदिशब्दथकी साकर खांगना विकार साकरीया पापम, नालिकेर, खांग कातली, पाक, सर्व मेवा प्रमुख, राजदना आदिक, तथा (रायण के०) रायण (अंबा के०) आंबा दिक एटले आम्रादिक फल सर्व अचित्त कह्यां पाकादिकें नीपजाव्यां मधुका दिकनां, नालिकेरा दिकनां,(दरकवाणाई के०)जाखवाणी प्रमुख,नालेरवाणी प्रमुख (मोलीतिबाश्या के०) मोली तेल आदि शब्दथकी नालिकेर सरशव प्रमुखनुं तेल, एरंड प्रमुखनुं तेल जाणवू. अकोमादिक मेवा हलवा प्रमुख ए सर्व (सरसुत्तमदव के०) सरस उत्तम अव्य कहीयें तथा एने (बेवकमा के ) लेपकृत पण कहीये. ए नीवीमां कल्पनीय जाणवां ॥ ३७॥ हवे ए सर्व पदार्थ कारणे लेवां कल्पे, पण सहज पणे
रसगृध्रतायें लेवां कल्पे नहीं, ते कहे जे. विगगया संसहा, उत्तमदवाइ निविपश्यंमि॥
कारणजायं मुत्तुं, कप्पंति नजुत्तुं जं वुत्तं ॥३॥ अर्थः-एक (विगगया के०) विकृतिगता एटले दूध प्रमुख विगश्थी उत्पन्न थया जे नीवीयाता जे संख्यायें त्रीश पूर्वे कह्या ने ते, बीजा (संसहा के०) संसृष्ट अव्य जे करंबादिक, मगदल, पापमी पिंमादिक, त्रीजी (उत्तम
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