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पञ्चकाण नाष्य अर्थसहित. ५०१ वृत्तिश्रादिक ग्रंथथी जाणवो. आंही संदेप मात्र लख्यो ॥ ॥
हवे चार अजय विगय , तेना उत्तरनेद कहे बे. कुत्तिय मयि नामर, महु तिदा कह पिठ मद्य उदा ॥ जलथल खग मंस तिहा, घयव मकण चन अन्नका ॥४१॥ दारं ॥६॥
अर्थः-तिहां प्रथम मधुविगयना नेद कहे जे. एक (कुत्तिय के०) कुत्तां बगतरांजंगलमध्ये थाय . तथा वर्षाकालें विशेष थाय , तेहगें मध,बीजें (मबिय के०) माखीजें मध, अने त्रीजु (नामर के०) नमरानुं मध एवं (तिहा के०) त्रण प्रकार- (महु के ) मधु एटले मध जाणवू तथा एक (कठ के) काष्ठ ते धाउमी प्रमुख काग्थी महुमादिकथी नीपन्यु मद्य,वीजें (पिठ के) पिष्ट ते ज्वारप्रमुखना आटादिकथी नीपनी मदिरा ए ( मद्य के०) मद्य एटले मदिरा ते (उहा के)बे प्रकारनी जाणवी. हवे मांसनानेद कहे . एक (जल के०) जलचर जीव जे मत्स्यादिक तेनुं, (थल के) थलचर जीव जे छिपदचतुष्पदा दिक तेनु, त्रीजु (खग के०) खेचर जीव जे पदीयादिक तेनु, ए (तिहा के०) त्रिधा एटले त्रण प्रकार- (मंस के०)मांस जाणवू,तथा (घयत्व के) घृतवत् एटले जेम घृत, गाय नेष गांगरी अने बगली ए चार प्रकारें कडं तेम (मखण के०) माखण पण एहज चार प्रकारचें जा णवू,पण एटलुं विशेष जे माखण ते सर्व (चनअनरका के०)चारे प्रकार नुं अनदयज अने घृत जे जे ते चारे प्रकारनुं नय विगयमां कडं बे,जेमाटें बोद यश् खटासें चलित रसपणुं पामीयें एवी एक मदिरा,बीजुंगसथी बाहेर नीकट्युं एवं माखण,त्रीजुंजीवित शरीरथी अलगुं थयुं एवं मांस,रुधिर तेपण एमज जाणवू, तथा चोथु मधुपुमाथी उपन्युं मधु, ए चारे पदार्थोने विषे अंतर मुहर्तमध्ये असंख्याता बे इंडिय जीव उपजे, तेमां मांसपेशी मध्ये तो पक्क तथा अपक्क तथा अग्नि उपरें पच्यमान एवो थको पण तेमांहे अ संख्य बेंघिय तथा पंचेंजिय तथा निगोद जीव अनंता पण पोतें पोतानी मेले उपजता कह्या बे, तेमाटें ए चार विगय जे , ते सर्वथा अजय वर्ज नीय कह्यां .ए त्रीश निविगश्नुं बहुं द्वार पूर्ण थयु. उत्तर बोलण थयाधर
हवे पच्चरकाणना बे नांगानुं सातमुं हार कहे बे. पञ्चकाण बे न्नेदें , एक मूलगुणरूप अने बीजुं उत्तर गुणरूप तिहां
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