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________________ पञ्चकाण जाप्य अर्थसदित. न्य उनो उच्चार तथा श्रागार पण सरखाने तेमज पुरिम ने (अवडं के०) अवर्नु पच्चरकाण पण सरखं जाणवू, तथा एकासणुं अने (उजत्त के०) हिनक्त एटले बीसणानुं पच्चरकाण अने आगार पण सरखा जाणवा, तथा विगने(निविगश्के) नीविनुं पच्चरकाण अने आगार पण सरखा जाणवा. तथा (अंगुछ केश) अंगुठसहियं, (मुहि के०) मुहिसहियं, ( गंठी के) गंठिसहियं, (सचित्तदवाई के०) सचित्त व्यादिक, पच्चरकाण एटले स चित्त अव्यादिक एटले सचित्त अव्यादिकना पच्चरकाण जे देसावगासिक तेमज दिवसचरिमा दिनां पञ्चरकाण ए सर्व (अभिग्गहियं के०) अनिग्रह प चरकाण कहेवाय, तेना पण मांहोमांहे पाठ तथा आगार सरखा जणवा. परंतु कालप्रमाणादिकें तथा स्थानकें तो फेर फार होयज ॥ २३ ॥ हवे ए सर्व श्रागारोना अर्थ कहे . विस्सरण मणानोगो, सहस्सागारो सय मुदपवेसो॥ पबन्नकाल मेदाई, दीसि विवझासु दिसिमोहो ॥२४॥ अर्थः-जे (विस्सरणं के०) विस्मरण थइ जाय ते (अणाजोगो के) अनानोगयी थाय एटले पञ्चकाणनो उपयोग अनाजोग थकी वीसरी जाय तेवारें अजाणपणे कांश मुखमां प्रक्षेप करे तो तेथी पच्चरकाण नंग न थाय. ए प्रथम अणाजोगेणं श्रागार कह्यु एनी साथै अन्नब शब्द जोमीये ते वारें अन्नबणाजोगेणं एवं नाम थाय माटें तेनुं कारण समजवाने नीचें अर्थ लखीयें .यें, अन्नबणाजोगेणं एटले अन्यत्र अने अनाजोगात् तिहां अन्यत्र एटले जे आगार कह्यां होय ते आगार वर्जीने बीजा सर्वत्र स्थानकें पच्चरकाण पालवानी यत्ना राखवी. अन्नब ए पद सर्वे आगारें जोमवू, एम जाणवू तथा अनाजोगात् एटले वीसरवाथकी अर्थात् पच्च काणनो उपयोग वीसरते अजाणतां कांश मुखमां प्रदेप करा जाय पड़ी पञ्चरकाण सांजरी आवे तेवारें तरत मुखथकी त्याग करे तेथी पञ्चरकाण जंग थाय नही अथवा अजाणे मुखथकी हेठे उतरतूं पड़ी कालांतरें अ थवा तुरत स्मरणमां आवे तो पण पच्चरकाणनो नंग थाय नही परंतु शु अव्यवहार ने तेथी फरी निःशंक न थाय ते माटें यथायोग्य प्रायश्चित्त से. ए वात सर्व आगारोने विषे जाणवी. माटें आहीं पीठिकारूपें लखी. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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