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________________ ४४ प्रतिक्रमण सूत्र. इहां उकित्तविवेगेणं ए जे श्रागार डे, ते आगार पिंमविगइ श्राश्रयी बे, ते पिंम विगय जणाववा माटें विगयना नेद कही देखाडे जे. परंतु विग यना नेदो कहेवा, छार तो पागल आवशे हाल अंहीयां तो मात्र पिंग विगय उलखाववाने निमित्तेंज कहे . सुक्ष्मद मद्य तिलं, चनरो दवविग चार पिंमदवा॥ घय गुल ददियं पिसियं मकण पक्कन्न दो पिंमा ॥२२॥ अर्थः-एंक (के०) उग्ध, बीजो (मधु के०) मधु त्रीजो (मद्य के०) मद्य एटले मदिरा अने चोथो (तिलं के०) तैल ए (चउरो के०) चार (दव विग के०) अव्य विगय ने ए चार ते ढीबुं विगय होय रस रूप होय. माटें एने रसविगय कहीयें अने एक (घय के०) प्रत, बीजो (गुल के०) गोल, जोजो (दहियं के) दधि एटले दही अने चोथो (पिसियं के ) पिशितं ते मांस ए ( चउर के) चार विगय जे ते (पिंमदवा के०) पिंगजव्यरूप रसरूप जाणवा. ए चार पिंक होय ए- अव्य कोश् वेला अव्य होय, तथा कोश् वेला पिंग रूप थीणो पिंग होय. तथा एक ( मरकण के०) माखण, बीजो ( पक्कन्न के० ) पक्का न्न ए ( दो के०) बे कमा विगय जाणवां. ते खन्नावें करीने (पिंमा के०) पिंम रूप होय कठिन होय, माटें एने पिंमविगय कहीयें. ए दस विग य कह्यां. इहां उकित्तविवेगेणं ए श्रागार जे जे ते पिंमविगयनो ने तेज णाववा माटें था गाथा कही ॥ २५ ॥ __हवे केटलांएक पञ्चकाण मांहोमांहे आगार तथा पाठ उच्चार विशेषे करी सरखा ने एटले तेना आगार पण मांहो मांहे सरखा बे, अने पाठ पण सरखो बे, ते कहे . पोरिसि सम्मवई, उन्नत्त निविग पोरसाइ समा॥ अंगुठ मुहिगंठी,सचित्त दवाइंनिग्गदिअं ॥२३॥ अर्थः-(पोरसासमा के०)पोरिसि आदि देश्ने पच्चरकाण जे बे, ते सर खां जाणवां, एटले एक पोरिसि अने बीजी (पोरिसिस के०) सार्क पो रिसि ए बे सरखांजाणवां एटले पोरिसीने सार्क पोरिसीना पच्चरकाणनापा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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