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________________ ४६ प्रतिक्रमण सूत्र. बीजो (सहसागारो के ) सहसात्कार ते ( सयमुह के० ) पोतानी मेलें श्रावी मुखमांहे (पवेसो के०) प्रवेश करे ते जाणवू. एटले पञ्चकाण की, जे तेनो उपयोग तो वीसख्यो नयी पण कार्य करवाना प्रवर्तनयोग सक्षण सहसात्कारें वनावेंज पोताना मुखमां कां प्रवेश थ जाय जेम दधि मथतां थकां बांटो उमीने मुखमां पमी जाय अथवा अन्नादिकनो कण मुखमां पमी जाय तथा चजविहार उपवास होय अने वर्षाकालमां मेघनो बांटो मुखमां पमी जाय तो पच्चरकाण नांगे नही. त्रीजो ( पचन्नकाल के० ) प्रचन्नकाल ते कालनी प्रचन्नता जाणवी. जेम ( मेहार के) मेघादि एटले मेघना वादले करीने ढंकाश् गयेला सूर्यनी खबर न पडे तथा आदिशब्दथकी दिग्दाह, ग्रहादिक, रजोवृष्टि, पर्वत प्रमुख सर्वत जाणी लेवं. तिहां पर्वत अने वादला प्रमुखें अंतरिक्ष, सूर्य देखाय नही अथवा रज उमवे करी न देखाय तेवारें पोरिसीयादि कना कालनी खबर न पमतां अपूर्ण थयेलीने संपूर्ण थयेली जाणीने ज मवा बेसी जाय तो पच्चरकाण जंग न थाय परंतु जाणवामां आवे तो पड़ी अर्को जम्यो थको होय तो पण एमज बेशी रहे,अने पोरिसी श्रादि पूर्ण थाय पठी जमे तो जंग न थाय, परंतु हजी पूर्ण थ नथी एबुं जाण वामां आवे तो पण परखे नही अने जमे तो पच्चरकाण जंग थ जाय ॥ चोथो (दिसिमोहो केआ) दिसामोहेणं ते (दिसिविवजासु के)दिशिना विपर्यासपणाथकी जेवारें दिङ्मूढ थर जाय तेवारें पूर्वने पश्चिम करी जाणे अने पश्चिमने पूर्व करी जाणे एम खबर न पमवाथी अपूर्ण पञ्च काणे पूर्णकाल थयो जाणीने जमे तो पच्चरकाण जंग नही अने दिङ् मोह मटी गयां पठी जेवारें जाणवामां आवे तेवारें पूर्वनी पेठे अर्को जम्यो थको होय तो पण पच्चरकाण पूर्ण थाय तिहां सुधी एमज बेशी रहे अने काल पूरो थया पड़ी जमे ॥२४॥ साहुवयण जग्घाडा, पोरिसि तणु सुबया समादित्ति॥ संघा का महत्तर, गिदब बंदाइ सागारी॥३५॥ अर्थः-पांचमुं ( उग्घामापोरि सि के०) ऊग्धाम पोरिसी एवो (साह वयण के०) साधुनुं वचन एटले बहुपडिपुला पोरिसि एवं सांजलीने जो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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