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________________ ४६२ प्रतिक्रमण सूत्र. गुर्वादिक तथा रत्नाधिक शिष्यने कहे के तमें समर्थ हो, पर्यायें लघु डगे, माटे वृजनुं तथा ग्लान- वैयावच्च करो तेवार ते पाडो जबाप आपे के जो तमेंज लान जाणो बो, तो तमे पोतें केम नथी करता? तथा तमारो बीजो पण शिष्यादिकनो बहु परिवार ने ते लाजनो अर्थी नथी? तो तेमनी पासे करावो. तेवारें वली गुर्वादिक तेने कहे के हे शिष्य! तमें श्रा लसु न था. तेवारें वली गुरुने कहे के तमे ते शुं अमनेज दीग ? एवीरी तनां वचन बोलीने गुरुनी (तजाय के) तर्जना करे ते आशातना जा णवी. पञ्चीशमी गुर्वादिक धर्मकथा कहेता होय तेवारें शिष्य उमणो थाय परंतु ( नोसुमणे के० ) सुमनो न थाय, गुर्वा दिकना गुणनी प्रशंसा करे नही अने कहे के तमें गृहस्थने विशेष प्रकारे समजावो बो, कहो ठो, तेरीतें अमने समजावता नथी अथवा गुर्वादिक तथा रत्नाधिकनोजे रागी होय तेने देखीने उमणो थाय ते आशातना जाणवी ॥ ३६ ॥ बबीशमी जेवारें गुरु कथा करता होय तेवारें कहे के तमने ए अर्थ (नोसरसि के) नथी सांजरतो? आ अमुकनो अर्थ एम न होय एवी रीतें कहेतां आशातना लागे. सत्तावीशमी गुर्वादिक कथा करतां होय तेनी व चमां पोतानुं माहापण जणाववाने अर्थे सन्य लोकने कहे के ए कथा डं तमने पली समजावीश एम कही (कह बित्ता के०) कथानो छेद करे, ते आशातना जाणवी, अठावीशमी गुरु कथा कहेता थका होय अने तेने सन्य लोक हर्षवंत हृदयथी सांजलतां होय तेसन्यजनोने देखतां उतां गुरुने कहे के एवमी शी कथा कहो डो? हमणां निदानो अवसर ,नोज नवेला पोरिसि वेला बे, एम कही ( परिसंनित्ता के०) पर्षदानो नंग करे तो आशातना थाय, उगणत्रीशमी गुर्वादिक धर्मकथा कही रह्या पढ़ी पर्षदा (अणुठिया के०) अणउठे थके तेज कथाने पोतानुं माहापण जणाववाने हेतुयें जे गुरुयें अर्थ कह्यो होय तेहिज अर्थ वली विशेषथी विस्तारी चर्ची देखामीने (कहि के०) कहे तो आशातना थाय, त्रीशमी (संथारपायघट्टण के०) गुरुनी शय्या तथा संथाराने पोताना पादादिकें करी संघट्टे तेने खमावे नही तो श्राशातना थाय, श्हां शय्या ते सर्वांग प्रमाण जाणवी, अने संथारो ते अढी हाथ प्रमाण जाणवो, अथवा श य्या ते कर्णादिवस्त्रमय जाणवी, अने संथारो ते दर्नादिक तृणमय जाण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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