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________________ ४६० प्रतिक्रमण सूत्र. बगए, किं तुम तजाय नो सुमणे ॥ ३६॥ नो सरसि कह बित्ता, परिसंनित्ता अणुहिवाइ कदे ॥ संथार पायघट्टण, चिहुच समासणे आवि ॥ ३७ दारं ॥२१॥ अर्थः-प्रथम गुरुने (पुर के०)आगल चालतां शिष्यने विनयनंगादिक लागे माटे ए अकारणे आशातना थाय परंतु जो मार्गादिकनी विषमता होय अथवा गुरुने मार्ग देखावा माटे जो गुरुथी आगल चालवू पके तो ते अकारणमां गणाय नही. बीजी (पक के०) गुरुने पमखे बेहु पासें गमन करे गुरुनी बराबर चाले तो आशातना थाय, त्रीजी (आसन्ने गंता के०) एमज गुरुने आसन्ने एटले अमकतो गंता एटले चाले पवाडे द्व कमो चाले तो श्वास, बींक, श्लेष्म, उध्रसादि दोष रूप आशातना थाय, एम ए त्रण आशातना जेटले नूमिनागें गुरुनी साथे चालतां थकां थाय, तेटलेज नूमिनागें गुरुनी पासें (चिहण के ) उन्ना रहेवाथकी पण पूर्वोक्त त्रण आशातना थाय, एम त्रणे स्थानकें गुरुनी पासें (निसिय णा के०) बेसता थकां पण पूर्वोक्त त्रण आशातना थाय. एवं नव थर, द शमी (आयमणे के०) आचमने एटले गुरुनी साथें उच्चार नूमियें गयां थ कां शिष्य जो आचार्यथकी पहेला आचमन लीये अथवा गुरुनी पहेलां च लु करे अथवा हायवाणी लीये त्रो आशातना थाय. अगीयारमी उच्चारा दिक बहिर्दिशीगुर्वादिक साथें आव्या पठी गमणागमणाथी जो गुरुथकी प्र थम (आलोयण के०) आलोये, तो आशातना थाय, बारमी गुर्वा दिक वडेरा तथा रत्नाधिक जे होय ते रात्रिये बोलावे जे कोण सूतो ? कोण जागे डे ? एम वचन सांजलतो जागतो थको पण (अपमिसुणणे के०) अण सांजलतानी पेरें पागे प्रत्युत्तर नहीं आपे तो आशातना थाय. ते रमी गुरुआदिकने आलाववा बोलाववा योग्य एवा को श्रावकादिक श्रा व्या होय अथवा आवेला जे तेने आवर्जवा माटे गुरु बोलाव्यानी (पु बालवणेय के०) पूर्वेज पोते बोलावे तो आशातना थाय, (अ के०) वली चौदमी अशन पान खादिम स्वादिम ए चारे आहार रूप जे निदा आणी होय ते प्रथम को बीजा शिष्यादिक आगल आलोईने पड़ी गुरु भागले (आलोए के ) आलोचे तो आशातना थाय ॥ ३५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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