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________________ देववंदन नाष्य अर्थसदित. ४४७ देतो बतो पण (किश्कम्म के०) कृतिकर्म थकी जे कर्मपरिशाटनरूप (नि जरा के० ) निर्जरा थाय तेनो (नागी के०) संविनागी (न होश के०) न थाय एटले ते वांदणांनुं जे निर्जरारूप फल, ते न पामे ॥ १५ ॥ ए दशमुं छार थयुं उत्तर बोल सित्तेर थया ॥ ___ यंत्र स्थापना. अवनत यथाजात श्रावतः शिरो गुप्ति. प्रवेश. | निकलवू. नम. मुजा. . नमन. हवे मुहपत्तिनी पच्चीश पमिलेहणानुं अगीयारमुं हार कहे जे. दिहि पमिलेह एगा, बजट्ठपप्फोम तिग ति अंतरिआ ॥ अकोम पमऊणया, नवनव मुहपत्ति पणवीसा ॥ २० ॥ अर्थः-प्रथम मुहपत्तिने पहेले पासें सूत्र अने बीजे पासें अर्थ तेनुं तत्त्व, सम्यक् प्रकारें हृदयने विषे धरूं एमचिंतवीने मुहपत्ति उखेली तेना बेहु पासां सर्वत्र दृष्टियें करी जोवां ते (दिहिपमिलेह के०) दृष्टि पडिले हणा (एगा के०) एक जाणवी. तेवार पड़ी (ब के०) (उप्फोम के०) जंचा पखोमा करवा एटले मुहपत्तिने फेरवी बे हाथे साहीने एकेका हाथें नचाववा रूप त्रण त्रण उंचा पखोमा करवा तिहां माबे हाथे करतां स म्यक्त्व मोहनीय, मिश्रमोहनीय अने मिथ्यात्वमोहनीय ए त्रण मोहनीय परिहरु एम चिंतवीयें तथा जमणे हाथे करतां कामराग, स्नेहराग अने दृष्टिराग, एत्रण राग परिहलं. एम चिंतवीयें ए ब खंखेरवा रूप उ पमिलेह णा यश् तेनी साथे प्रथमनी एक दृष्टि पमिलेहणा मेलवीये तेवारें सात थाय. . तेवार पड़ी (तिग के०) त्रण (अस्कोम के०) अकोमा अने (ति के०) त्रण ( पमऊणया के ) प्रमाना एटले पूंजq ते अनुक्रमे एक बीजा केडे त्रणवार (अंतरिया के० ) एकेकने अंतरे करवा एटले मुहपत्तियें एक पम वाली मुहपत्तिना त्रण वधूटक करी जमणा हायनी अंगुलीना आंतरानी वचमां नरावीने त्रण अकोमा पसली नरी त्रणवार मुह पत्ति उंची राखी मावा हाथना तलाने अण लागते खंखेरीये पण हाथने तले लगामीयें नहीं पड़ी त्रण प्रमार्जना पशलीमांहेथी घसी काहा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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