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________________ ४४६ प्रतिक्रमण सूत्र. लगामतां कहे,वीजो अदर उत्तान हाथे वचाले विशामा रूप कहे अनेत्री जो अदर ललाटदेशे हाथ लगामतां कहे, जेम "ज त्ता ने” “ज व णि" " ऊंच ने” एवा त्रण आवर्त्त त्रण त्रण अकरना कहेतो खामे मि खमासमणो कही बीजी वार मस्तक नमाडे. ए रीतें ए प्रथम वांदणे बावर्त्त थयां तेम वली बीजे वांदणे पण एज रीतें उ आवर्त्त थाय, बे वार मली बार आवर्त रूप बार आवश्यक थाय. सर्व मली पंदर थयां. ___ तथा (चउसिर के०) चतुःशिरः एटले चार वार शिर नमाम तिहां पहेले वांदणे बे वार मस्तक नमामवं अने बीजे वांदणे पण बे वार मस्तक नमाम, मली चार वार शिर नमन थाय. एवं उंगणीश आवश्यक थयां. तथा ( तिगुत्तं के ) त्रण गुप्ति ते मन, वचन अने काया ए त्रण नेअन्यव्यापारथी गोपवी राखे ए त्रणने अव्यथी तथा नावथी अयत्नायें न प्रवर्त्तावे, एवं बावीश आवश्यक थयां. तथा (कुपवेस के०) हिप्रवेश एटले बे वार आवश्यकें बे वार गुरुनी आज्ञा मागी अवग्रहमांहे प्रवेश करवा रूप बे आवश्यक अने (ग निरकमणं के०) एक वार अवग्रहथी बाहेर निकले एटले पहेले वांदणे आज्ञा मागी निसीहि कहेतो पग पूंजतो थको एकवार अवग्रह मांहे प्रवेश करे अने पठी आवस्सियाए कहेतो पागल पूंजतो एकवार पहेले वांदणे अवग्रहथी बाहेर निकले, अने बीजा वांदणामां प्रवेश करे पण फ री पाडो बाहेर निकले नही माटे बे वार पेसवु अने एकवार निकलवं मली त्रण आवश्यक थयां ते पूर्वोक्त बावीश साथें मेलवतां (पणवीसा के ) पच्चीश (श्रावसय के) आवश्यक ते ( किश्कम्मे के० ) कृतिकर्म एटले वांदणांने विषे थाय ॥ १७ ॥ किइ कम्मपि कुणंतो, न दो किश्कम्म निकरा नाग। पणवी सामन्नयरं, साहु हाणं विराईतो॥रा दारं ॥१॥ अर्थः- हवे ए (पणवीसां के०) पञ्चीश आवश्यक जे जे, तेमां (श्र नयरं के०) अनेरे एक पण (हाणं के०) स्थानक प्रत्ये (विराहंतो के०) विराधतो एवो जे (साहु के०) साधु तेमज साधवी श्रावक,श्राविका होय, ते ( किश्कम्मंपिकुणंतो के ) कृतिकर्मने करतो तो पण एटले वांदणां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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