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________________ ४४२ प्रतिक्रमण सूत्र. कहीयें, चोथा जे चारित्रथी पमता होय तेने प्रतिबोध आपीने पाग ठेकाणे आणे तेने (थेरे के ) थिविर कहीयें ( तहेव के० ) तथैव एट ले तेमज वली पांचमा गबने अर्थे क्षेत्र जोवा माटे विहार करे, सूत्र अर्थना जाण तेने ( रायणिए के) रत्नाधिक गणाधिप कहीयें, (श्मे सिपंचन्हं के ) ए कह्या जे आचार्यादिक पांच जण तेने ( किश्कम्म के) कृतिकर्म एटले वादणानुं कर्म (कायवं के०) कर, एटले वांदणां दे वां ते केवल (निङरहा के) कर्मनिर्धाराने अर्थे जाणवू ॥ १३॥ ए आचार्यादिक पांचवें कांश्क विशेष स्वरूप नीचे लखीयें वैयें. आचार्य ते सूत्र अने अर्थ उन्नयना वेत्ता, प्रशस्त समस्त लदणे लदि त, प्रतिरूपादि गुणयुक्त शरीर होय, जाति कुल गांजीय धैर्यादि अनेक गुणमणियुक्त, आठ प्रकारनी गणिसंपदायें करी युक्त, पंचाचार पालक, पलाववाने समर्थ. बत्रीश बत्रीशी गुणें करी बिराजमान, आर्य पुरुषे सेववा योग्य, गछमूलस्तंचनूत गछचिंतारहित अर्थनाषी, एटले जेमां गडचिंता न उपजे एवा अर्थ नाषे एवा गुण युक्त ते आचार्य जाणवा. तथा उपाध्याय ते जेनी पासें अगीयार अंग, बार उपांग, चरणसित्तिरी, करणसित्तिरी जणीयें, आचार्यने युवराज समान,झान, दर्शन अने चारित्र रूप रत्नत्रयी युक्त, सूत्र अर्थना जाण, आचार्यने हितचिंतक, ते उपाध्याय तथा प्रवर्तक ते यथोचितप्रशस्त योग जे तप संयम तेने विषे साधुसमुदा यने प्रवर्त्तावे,गबने योगदेम करवानी योग्यतानी संचालना करनार जाणवा. तथा थिविर ते ज्ञानादिकगुणोने विष सीदाता साधुने इहलोक तथा परलोकना अपाय दृष्टांत देखामी संयममार्गमां स्थिर करे, ते स्थविर त्रण प्रकारें बे. एक शावर्षना ते वयःस्थविर, बीजा वीश वरसदीदा प र्याय जेने थया होय ते पर्यायस्थविर, त्रीजा जे निशीथादिक बेदग्रंथना रहस्य जाणे, जघन्यथी समवायांगादि श्रुत जाणे, ते श्रुत स्थविर पण शहांतो जेने आचार्यादिकें स्थविर कीधा होय ते स्थविर जाणवा. तथा रत्नाधिक ते गछने कार्ये शिष्य उपधि प्रमुख लालनें अर्थे विहारक रणशील सूत्रार्थवेत्ता एनुं गणावछेदक एवं पण नाम कहीयें एवा गुणवंत ते पर्यायें ज्येष्ट अथवा लघु होय तो पण तेने रत्नाधिक कहीयें. एटले पां च वंदनिकनुं चोथु झार थयु. उत्तर बोल वीश थया ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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