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________________ ४३२ प्रतिक्रमण सूत्र. मां (आश्मं के) श्रादिम एटले पहेलु फेटावंदन जे जे ते साधु, साध्वी, श्रावक अने श्राविकारूप चतुर्विध (सयलसंघे के ) समस्तश्रीसंघे म ली ( मिहो के०) मिथो एटले मांहोमांहे परस्पर तेवा तेवा अवसरने विषे करवु होय त्यारें थाय, अने (बीयं के०) बीजुं जे थोजवंदन , ते (तु के ) निश्चे वली सुसाधु एवा (दसणीण के० ) दर्शनीयनेज अर्थे होय, एटले एक गगत, बीजो अनुयोगी, त्रीजो अनियतवासी, चोथो गुरुसेवी, पांचमो आयुक्त जे संयममार्गमां सावधान एवा गुणवंत यतिने ए वांदणुं देवाय, तथा ( य के०) चकारथी, तथा विधिविशिष्ट कार्यने विषे लिंगमात्रधारी पण जो सम्यक्त्वदर्शनवंत होय, तो ते पण बोजवंदने वंदनीय होय. तथा ( तश्यं के०) त्रीजुं छादशावर्त वंदन जे जे ते (तु के ) वली आचार्य, उपाध्याय, गुणवंत गीतार्थादिक एवा ( पयहि णं के० ) पदप्रतिष्ठित जे होय तेमने ( च के ) निश्चें होय ॥४॥ __ हवे ए वांदणांनां पांच नाम बे, ते कहे . वंदण चिव किश कम्मं, पुकम्मं च विणयकम्मं च ॥ कायचं कस्स व के, ण वावि कादेव कइ कुत्तो ॥५॥ अर्थः-एक (वंदण के०) वंदन कर्म अने अभिवादन स्तुतिरूप, अर्कावन तकाय करवी, ते शरीर मस्तकादिकें अवनत तथा कर्मथकी जलां कर्म बंधाय एटला माटें बीजुं (चिश् के०) चितिकर्म, त्रीजुं (किश्कम्मं के०) कृतिकर्म वांदणुं, (च के०) वली नलां मन, वचन अने कायानी चेष्टानुं जे कर्म करवू, ते माटें चोथु (पूआकम्मं के०) पूजाकर्म कहियें, तथा विनयनुं करवू तेमाटें पांचU (विणयकम्मं के०) विनयकर्म कहीयें, ए पांच प्रकारें वंदन (च के०) वली ( कायवं के०) करवू एटले पांच प्रकारे वांदणां देवां ते (कस्स के०) केने अर्थे देवां? (व के०) वली (केणवावि के) केहने वादणां देवां? अपि शब्द निश्चयार्थमां . ( काहेव के) केवारें वांदणां देवां? (कश्कुत्तो के०) केटली वार वांदणां आपीयें ? ॥५॥ कणयं कशसिरं, कादि व आवस्सएहिं परिसुझ॥ कश्दोस विप्पमुकं, किश्कम्मं कीस किरईवा ॥६॥ अर्थः-वांदणाने विषे ( कणयं के ) केटला अवनत करवा, (क Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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