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________________ गुरुवंदन भाष्य अर्थसहित. ४३१ शहां शिष्य पूजेने के थोनवंदने तथा छादशावर्त वंदने प्रथम एक वार वांदीने फरी बीजी वार शे हेतुयें वांदीयें वैयें? त्यां प्राचार्य उत्तर आपे बे. जद दूजे रायाणं, नमिलं कळं निवेश्नं पड़ा। वीसजिवि वंदिश, गवइ एमेवश्च उग॥२॥ अर्थः-(जहदू के) जेम पूत पुरुष ले ते (रायाणं के०) राजाने. (नमिजं के०) नमिने ( कऊंनिवेश्वं के) कार्य निवेदन करे वली (प डा के) पाडो राजायें (वीसजिवि के ) विसयों थको पण (वंदि अ के) वांदीने (गबर के०) जाय (एमेव के) एनी पेरें (श्व के ) श्हां गुरुवंदनने विषे पण वंदननुं (उगं के) छिक जाणवू ॥२॥ अने छादशावर्त्त वंदनें तो बेहु वांदणे मलीने आवश्यक आवर्तादि बोल नीप जे , ते माटें बेहु वांदणानी जोमीयें एकज वंदन कहेवाय ॥ हवे वांदणां देवानुं कारण शुं ? ते कहे . आयरस्सन मूलं विण सो गुणव अपडिवत्ती॥ सा य विदि वंदणा, विही श्मो बारसावत्ते ॥३॥ अर्थः-जे माटे श्रीसर्वप्रणीत जे (आयरस्स के ) आचार तेनो (उ के०) वली ( मूलं के०) मूल जे जे, ते ( विण के०) विनय ठे ( सोके) ते विनय केवी रीतें होय ? ते कहे . (गुणवर्ड के०) गुणवंत गुरुनी (अ के० ) वली (पभिवत्ती के०) प्रतिपत्ति एटले सेवा करवी जाणवी (सा के०) ते नक्ति ( च के० ) वली ( विहिवंदणा के० ) वि धियें करीने वांदवाथ कि थाय ते ( विही के ) विधि (श्मो के ) आ आगल (बारसावत्ते के ) द्वादशावत वंदनने विषे कहेशे ॥३॥ __ हवे ए त्रीजुं छादशावर्त्त वंदन केम होय ? ते कहे . तश्यं तु बंदण उगे, तब मिहो आश्मं सयल संघे॥ बीयं तु दसणीण य, पयहिणं च तश्यं तु॥४॥ अर्थः-( तश्यं के०) त्रीजुं छादशावर्त्त वंदन ते (तु के०) वली (वं दणगे के०) बे वांदणां देवे करीने होय, एटले बे वांदणां देवे करी था य, श्हां बंदण शब्द वंदनवाचक जाणवो. (तब के०) ते पूर्वोक्त त्रण वांदणां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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