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प्रतिक्रमण सूत्र. चलावे, ते (पेह के ) प्रेष्य दोष (इति के० ) ए प्रकारे ए उंगणीश दोष ते (उस्सग्गो के) काउस्सग्गने विषे जाणवा. तेने (चश्ज केण) बांडे. ए जंगणीश दोषमां केटलाएक नमूह अने अंगुली बे जूदा दोष करे , तेवारें वीश थाय, तथा एक (लंबुत्तर के०) लंबुत्तर, बीजो (थण के) स्तन अने त्रीजो (संजर के०) संयति ए त्रण (दोस के०) दोष ते (समणीण के०) श्रमणीने (न के०) न होय, केम के एनुं वस्त्रावृत शरीर होय, पण एटलुं विशेष जे साध्वी प्रतिक्रमणादि क्रिया करते मस्तक उघाडु राखे एटले शोल दोष साधवीने लागे, अने ए त्रण दोषने (बहु के) वधू दोषे करी (स के) सहित करिये तेवारें लंबुत्तरादि चार दोष थाय. ते (सहीणं के) श्राविकानें न होय, शेष पंदर दोष श्रावि काने लागे ए सर्व दोष टालीने काउस्सग्ग करवो एटले काउस्सग्गना दोषनुं वीशमुं छार थयु. उत्तर बोल २०५५ थया ॥ ५७ ॥ हवेकाउस्सग्गना प्रमाणYएकवीशमुंहार तथा स्तवननुंबावीशमुंहार कहे
इरि उस्सग्ग पमाणं, पणवीसुस्सास अह सेसेसु ॥ दारं ॥२॥ गंजीर महुर सद, महबजुत्तं हवस् थुत्तं ॥ ५७ ॥ दारं ॥२२॥
अर्थः-(शरिउस्सग्ग के० ) रियाव हिना काउस्सग्गर्नु (पमाणं के०) प्रमाण (पणवीसुस्सास के) पच्चीश श्वासोवासनुं जाणवू. एटले संप्र दायें “चंदेसु निम्मलयरा” पर्यंत यावत् पच्चीश पदनुं काउस्सग्ग कराय बे, अने (सेसेसु के०) शेष काउस्सग्ग जे देव वांदता स्तुति काउस्स ग्ग ते (अह के) आठ श्वासोवास प्रमाण जाणवो. केम के संप्रदायें एक नवकारनी संपदा आठ माटें. ए काउस्सग्ग प्रमाण- एकवीशमुं छार थयु. उत्तर बोल २०५६ थया. __ हवे श्रीवीतरागनु स्तवन केहवा प्रकारें कहे ? तेनु बावीशमुं द्वार कहे जे, (गंजीर के) मेघनी पेरें गंजीर अने (महुरसहं के०) मधुर शब्द के जिहां अने वली (महबजुत्तं के०) महाअर्थयुक्त नक्ति, ज्ञान, वैराग्य अने आत्मानंदादि दशायुक्त एवू श्रीवीतरागर्नु (युत्त के०) स्तुत एटले स्तवन (हवर के) होय. ए स्तवन नणवानुं बावीशमुंछार थयु. उत्तर बोल २०५७ थया ॥ ७ ॥
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