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________________ देववंदन नाष्य अर्थसहित. ४२५ हवे चैत्यवंदन एक दिवसमां केटलीवार करवं? तेनुं त्रेवीशमुं हार कहे ले पडिक्कमणे चेश्य जिमण, चरिम पमिकमण सुअण पडिबो दे॥चिश्वंदण इअ जश्णो, सत्तन वेला अहोरत्ते ॥॥ अर्थः-एक (पमिकमणे के० ) प्रजातने पमिकमणे पञ्चरकाण करतां देद वांदवाने विषे विशाललोचन कही चैत्यवंदन करे, बीजु (चेश्य के) चैत्यगृहमां जगवंत आगले चैत्यवंदन करे, त्रीजुं ( जिमण के) जमती वखत पच्चरकाण पारे, तेवारें चैत्यवंदन करे, चोथु (चरिम के०) बेहे लो जमीने उव्या पली एटलेषाहार करी रह्या पली दिवसचरिम पच्चरकाण करतां चैत्यवंदन करे, पांचमुं (पमिकमण के०) संध्याने पमिकमणे न मोस्तु वर्षमानादि चैत्यवंदन करे, बहुं (सुश्रण के०) सूती वखतें शयन संथारा पोरिसी जणावतां चैत्यवंदन करे, सातमुं (पमिबोहे के०) पा बसी रात्रे जाग्या पठी कुसुमिण उसुमिणकाउस्सग्ग कस्या पली किरियानी वेलायें चैत्यवंदन करे, (श्य के०) ए कह्या जे ( सत्तउवेला के०) सात वखतना (चिश्वंदण के०) चैत्यवंदन करवां ते (अहोरत्ते के०) एक अ होरात्रमध्ये (जश्णो के० ) यतिने होय ॥ ५॥ हवे श्रावकने एक अहोरात्रमा केटलां चैत्यवंदन होय? ते कहे . पमिकमिज गिहिणोवि हु, सगवेला पंचवेल अरस्स ॥ पूआसु ति संकासु अ, दोश ति वेला जहन्नेणं ॥ ६० ॥ अर्थः-एक प्रनाते अने वीजो सांके ए बे वार ( पमिकमिउ के०) पमिकमणुं करता एवा (गिहिणोवि के०) गृहस्थने पण (हु के) निश्चे यतिनी पेरें (सगवेला के०) सात वार चैत्यवंदन थाय. तथा जे एक वार पडिकमणुं करता होय एवा गृहस्थने (पंचवेल के) पांचवार चैत्यवंद न थाय, तेमां एक पोरि सि सांजलतां, एक क्रिया करतां अने त्रणवार दे व वांदता मली पांच थाय. अने तेथी (श्वरस्स के) इतर एटले जे पमिकमणुं नथी करता एवा गृहस्थने तो प्रजात, सांऊ अने मध्यान्हे ए (तिसंकासुत्र के०) त्रण संध्यायें (पूयासु के ) पूजाने विषे ( जहन्ने णं के०) ए जघन्यथी पण गृहस्थने माटें (तिवेला के०) त्रणवार चै Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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