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________________ देववंदन नाष्य अर्थसहित. ४२३ अर्थः-प्रथम घोडानी पहें एक पग उँचो राखे, वांको, पग राखे, ते (घोमग के० ) घोटक दोष, वीजो जेमवायराथी वेलमी कंपे तेम शरीर ने धूणावे, ते ( लय के० ) लता दोष, त्रीजो थांना प्रमुखने उविंगे रहे, ते (खंनाई के.) स्तंनादि दोष, चोथो मेडा उपरने माले माथु लगावी रहे ते ( माल के) माल दोष, पांचमो गामानी ऊधिनी पेरें अंगुग तथा पानी मेलवी पग राखे, ते (उकी के०) उधि दोष, हो नेउलमां पग नाख्यानी परें पग मोकला राखे, ते (नियल के० ) निगम दोष, सातमो नागी निवडीनी परें गुह्यस्थानकें हाथ राखे ते ( सबरि के) शबरि दोष, आठमो घोमाना चोकमानी परें हाथ रजोहरणे राखे, ते (खविण के० ) खविण दोष, नवमुं नवपरिणीत बहूनी पेरें माथु नीचुं राखे ते (वढू के०) वधूदोष, दशमो नानिनी उपरें अने ढीचणथी नी चे जानुं उपरें लोंबु वस्त्र राखे ते ( लंबुत्तर के) लंबुत्तर दोष, ए दोष यति आश्रयी जाणवो. केमके इंटीथी चार अंगुल नीचें अने ढीचणथी चार अंगुल उपर यतिने चोलपट पहेरवो कह्यो . अगीयारमुं डास म साना जयें अथवा अज्ञानथी लज्जाथी स्त्रीनी परें हैयुं ढांकी राखे, हृदय आबादे, ते ( थण के ) स्तनदोष, बारमो शीतादिकने जयें साधवीनी परें बेहु खंना ढांकी राखे एटले समग्र शरीर आछादी राखे ते (संजर के०) संयतिदोष, तेरमो आलावो गणवाने अर्थे संख्या करवाने अंगुली तथा पांपणना चाला करे, ते ( नमुहंगुलि के ) नमुहंगुली दोष, चउद मो वायसनी पेरें आंखना मोला फेरवे, ते ( वायस के० ) वायस दोष, पंदरमो पहेरेलां वस्त्र ते यूका तथा प्रस्वेदें करी मलिन थवाना जयने लीधे कोउनी परें बुगडं गोपवी राखे ते (कविठे के०) कपिछ दोष ॥५६॥ सिरकंप मूअ वारुणि, पेदत्ति चइज दोस उस्सग्गे॥ लंबुत्तर थण संज, न दोस समणीण सवहु सहीणं ॥५७ दारं १ अर्थः-शोलमो यदावेशितनी परें माधुं धूणावे, ते ( सिरकंप के ) शिरःकंपदोष, सत्तरमो मुंगानी पेरें हू हू करे, ते (मूत्र के) मूकदोष, अढारमो आलावो गणतो थको मदिरानी परें बमबमाट करे, ते (वारुणि के०) मदिरा दोष, उगणीशमो वानरनी पेरें अरहुं परहुँ जोवे, उष्ठ पुट Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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