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देववंदन नाष्य अर्थसहित. ४09 सविशेष उपयोग हेतु संपदा जाणवी,पढी यथार्थ पोताना स्वरूपन हेतु प्रकटार्थ देखामवा रूप सातमी ( सरूवहेज के०) स्वरूप हेतु संपदा जा णवी, तथा पोताने समान फलदायक प्रकटार्थ रूप एटले स्तवना करना रने आपतुल्य करे एवी परम फलदायिनी एटले पोतानी समान परने फ लन करण एटला माटे आठमी (नियसमफलय के०) निज समफलदनामे संपदा जाणवी, तथा मोद स्वरूप प्रकटार्थ रूप मोक्षपदनुं स्वरूप, एटला माटे नवमी (सुके के०) मोद संपदा जाणवी. जे माटे कडं बे के “ सब
थाई पढमो, बी सिवमयल मा ालावो ॥ तर्ज नमोजिणाणं जिय नयाणं तन्निदिको ॥ १॥ इत्यावश्यके ॥ ३५ ॥
हवे नमोबुणंना अक्षरादिकनी एकंदर सरवाले संख्या कहे . दो सगनका वमा, नवसं पयः तित्तीस सक्कथए ।
चेश्यथय संपय,तिचत्त पय वम उसयगुणतीसा ॥३६॥ अर्थः-( सकथए के० ) शकस्तव जे नमोनुणं तेने विषे सर्व मलीने (दोसगनऊ के)बशेने सत्ताएं (वला के०) वर्ण जाणवा अने (नवसंप य के०) नव संपदा जाणवी, तथा (पयतितीस के०) पद तेत्रीश जाणवां.
हवे (चेश्यथय के०) चैत्यस्तव एटले अरिहंत चेश्याणंने विषे सर्व मली (अठसंपय के०) आठ संपदा जाणवी अने ( तिचत्तपय के ) तें तालीश पद जाणवां, तथा (वम के ) वर्ण एटले श्रदर ते (उसयगु णतीसा के०) बशें ने उगणत्रीश जाणवा ॥ ३६ ॥ हवे चैत्यस्तव जे अरिहंत चेश्याएं तेनी प्रत्येक संपदाना पदनुं
मान तथा प्रत्येक संपदाना आदिपद एटले धुरियां कहेजे. बसग नव तिय उ चन,बप्पय चिइ संपया पया पढमा॥ अरिदं वंदण सिझा, अन्न सुहुम एव जा ताव ॥३७॥
अर्थः-पहेली (3 के ) बे पदनी, बीजी (के०) ब पदनी, त्रीजी ( सग के०) सात पदनी, चोथी ( नव के०) नव पदनी, पांचमी (तिय के० ) त्रण पदनी, बठी ( के ) उ पदनी, सातमी ( चउ के० ) चार पदनी, आग्मी (बप्पय के०) ब पदनी जाणवी.
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