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प्रतिक्रमण सूत्र. हवे ए (चि के०) चैत्यस्तवनी प्रत्येक (संपया के) संघदाना- ( पढ मा के०) प्रथमना एटले आदिनां धुरीयांनां (पया के०) पद कहे . ति हां (अरिहं के) अरिहंत चेश्याणं ए पहेली संपदानुं प्रथम पद (वंदण के०) वंदणवत्तियाए ए बीजी संपदानुं प्रथम पद (सिझाए के०) सिकाए ए त्रीजी संपदानुं प्रथम पद, (अन्न के०) अन्नबउससिएणं ए चोथी सं पदानुं प्रथम पद, (सुहुम के०) सुहुमेहिं अंगसंचालेहिं ए पांचमी संप दानुं प्रथम पद, (एव के०) एवमाश्एहिं आगारेहिं ए बही संपदानुं प्र श्रम पद, ( जा के ) जाव अरिहंताणं ए सातमी संपदानुं प्रथम पद, ( ताव के०) तावकायं ए आग्मी संपदानुं प्रथम पद ॥३॥
हवे ए चैत्यस्तवनी संपदाउँनां नाम कहे . अनुवगमो निमित्तं, देन इग बहु वयंत आगारा॥
आगंतुग आगारा, उस्सग्गावहि सरूवह ॥ ३७॥ अर्थः-जे अंगीकार करवू तेने अभ्युपगम कहीयें माटे श्हां अरिहंत वांदवानी अंगीकाररूप प्रथम (अपवगमो के) अच्युपगम संपदा जाण वी,तथा काउस्सग्ग कया निमित्तें करी करीये? ते बीजी (निमित्तं के०)नि मित्त संपदा जाणवी. तथा श्रमादिक हेतु वधते वधते करी करियें, केम के श्रमादिक कारण विना निष्फल थाय मानें त्रीजी (हेज के०) हेतु सं पदा जाणवी. तथा श्रागार राख्या विना निरतिचारपणे काउस्सग्ग न था य, एटला माटें आगार राखवानी अन्नबससीएणं इत्यादि उबासादिकने करवे करी चोथी (गवयंत के) एकवचनांत आगार संपदा जाणवी. तथा “सुहुमेहिं अंगसंचालेहिं” एटले सूमनेत्रादिकफुरकवादि मात्र आ दिकें करी पांचमी (बहुवयंत आगारा के ) बहुवचनांत आगार संप दा जाणवी. हां आगारा पद बेहुने जोमवू, तथा एक सहज बीजो अ दपबाहुल्य एटले एवमाश्एहिं एणे करी अग्निस्पर्श, पंचेंप्रिय छेदन, चौ रादिलय, सर्पादि, कदाचित् आवी मले तो इत्यादि आगार कह्यां, माटें बहुहेतु आगंतुक नावरूप अथवा अग्न्यादिक उपघात रूप बही (श्रा गंतुग आगारा के०) आगंतुकागार संपदा जाणवी. तथा जाव अरिहं ताणं इत्यादिक काउस्सग्गनो अवधि मर्यादा रूप जे संपदा, ते सात
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