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देववंदन नाष्य अर्थसहित. ३ए पांच प्रकारें . तिहां देहरे जातां (सचित्तदत्वं के०) सचित्तव्य जे पोताना अंगे श्राश्रित कुसुमादिक,फलादिक, होय, तेनु (उजाणं के०) बांगवू,ते प्रथ म अनिगम, तथा (अचित्तं के०) अचित्त पदार्थ जे अव्यनाणादिक तथा आजरणादिक वस्त्रादिक वस्तु तेनुं ( अणुऊणं के) अणगंम एटले पोतानी पासे राखवानी अनुझा ते बीजो अनिगम. तथा (मणेगत्तं के०) मन- एकाग्रपणुं करवू, ते त्रीजो अनिगम. तथा (गसामि के) एकप हुं वस्त्र बेहु डायें सहित होय तेनो (उत्तरासंग के०) उत्तरासंग करवो, ते चोथो अनिगम. तथा (जिण दिले के०) श्रीजिनेश्वरने दूरथकी नजरें दी थके (अंजलि के०) बे हाथ जोमीने (सिरसि के०)मस्तकनेविषे लगा मवा एटले अंजलिबल प्रणाम करवो,ते पांचमो अनिगम जाणवो ॥२॥
श्य पंचविदानिगमो, अदवा मुच्चंति रायचिन्दाइं॥ खग्गं बत्तोवाणद, मनडं चमरे अ पंचमए ॥१॥ दारं ॥३॥
अर्थः-(श्य के० ) पूर्वती गाथामां कह्या जे (पंचविहानिगमो के० ) पांच प्रकारें अनिगम ते देव तथा गुरु पासें आवतां साचववा (अहवा के०) अथवा वंदना करनार श्रावक जो पोतें राजादिक होय तो ते ए पांच अनिगम साचवे, अने वली बीजां (रायचिन्हा के०) राजानां पांच चि न्ह जे ते प्रत्ये (मुच्चंति के०) मूके एटले बगंडे तेनां नाम कहे , एक (खग्गं के० ) खड्ग, बीj ( उत्त के०) बत्र, त्रीजुं ( उवाणह के ) उपा नह, एटले पगनी मोजडी,चोथो माथार्नु (मजमं के०) मुकुट अने(पंचमए के०) पांचमुं (चमरेथ के०) चामर, ए पण पांच अनिगम जाणवा ॥१॥ एटले पांच अनिगमर्नु बीजुं हार पूर्ण थयुं ॥ उत्तर बोल पांत्रीश थया॥ ॥ हवे वे दिशिनुं त्रीजुं हार, तथा ऋण अवग्रहनुं चोथु छार कहे ॥
वंदंति जिणे दाहिण, दिसिम्आि पुरिस वा मदिसि नारी ॥ दारं ॥ ३॥ नवकर जदन्नु सहि,
करजिह मकुग्गदो सेसो ॥ २॥ दारं ॥४॥ अर्थः-(जिणे के०) श्रीजिनने (दाहिण दिसिडिया के०) दक्षिण दिशि स्थिता एटले मूल नायकनी जमणी दिशायें रह्या थका (पुरिस के०) पुरुषो
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