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प्रतिक्रमण सूत्र. (वंदति के०) वांदे एटले चैत्यवंदना करे,अने मूल नायकने (वामदिसि के) माबे पासे रही थकी (नारी के०) स्त्री जनवांदे,एटले चैत्यवंदना करे.इहां चै त्यवंदना पूजाना अधिकार माटें प्रसंगथी जमणी पासें दीपक थापवो, अने माबी पासें धूपादिक नाणुं, फलादिक, जिन आगलें तथा हस्तें आपीयें.ए बे दिशिनुं त्रीजुं छार थयु. अने उत्तर बोल सामंत्रीश थया.
हवे त्रण अवग्रह,चोथु हार कहे जे. तिहां जगवंतथकी (नवकार के०) नव हाथ वेगला रहीने चैत्यवंदना करवी,ते प्रथम (जहन्नु के०)जघन्य अ वग्रह जाणवो, तथा जगवंतथकी (सहिकर के०) षष्ठिकर एटले शाप हाथ वेगला रहीने चैत्यवंदना करवी,ते बीजो (जिह के०) ज्येष्ठ एटले उत्कृष्ट अव ग्रह जाणवो, अने (सेसो के०) शेष जे नव हाथथी उपर अने शाप हाथनी मांदेली कोरें एटली वेगलाईयें रही चैत्यवंदना करवी, ते सर्व त्रीजुं (माग्ग हो के०) मध्यम अवग्रह जाणवो.तथा केटलाएक आचार्य बार प्रकारना अव ग्रह कहे डे के ॥ उक्कोस सहि पन्ना, चत्ता तीसा दसह पणदसगं ॥ दस नव ति छ एगकं, जिणुग्गहं बारस विनेयं ॥१॥ एटले ६०,५०,४०,३०,१७,१५, १०,ए,३,२,१,०॥ ए बार अवग्रह थया एटले अर्का हाथथी मामीने शाप हा थ पर्यंत श्रीजिनगृहें तथा गृहचैत्यादिकें श्वासोबासादि आशातना वर्जवा निमित्तें ए अवग्रह जाणवां ॥ २२ ॥ ए चोथु त्रण अवग्रहy द्वार कह्यु, शहां सुधी सर्व मती उत्तर बोल ४० थया ॥२५॥
हवे त्रण प्रकारें चैत्यवंदना करवी,तेनुं पांचमुं हार कहे डे नमुक्कारेण जहन्ना, चिश्वंदण मद्य दंम थुइ जुअला ॥ पण दंम थुश् चउकग, थय पणिदाणेहिं नकोसा ॥१३॥ अर्थः-( नमुक्कारेण के० ) एक नमस्कार श्लोकादिक रूप तथा नमो अरिहंताणं कहीने अथवा हाथ जोमी मस्तक नमामवे करी अथवा नमो जिनाय कही नमवे करी अथवा एक श्लोकादि केहेवे करी अथवा हमणां देहरे चैत्यवंदन कहियें बैयें, इत्यादि रूपें सर्व प्रथम (जहन्ना के) ज घन्य ( चिश्वंदण के ) चैत्यवंदन जाणवू. तथा ( दंडथुश्जुअला के०) दंडक युगल ते अरिहंत चेश्याणंनुं युगल तथा स्तुतियुगल ते चार थुर एटले एक नमस्कार श्लोकादिरूप कही, शक्रस्तव कही, उन्ना थक्ष, अरि
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