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देववंदनार्थसहित.
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के०) पाउलनी पानीनी बाजुना जागमां मांहोमांहे चार यांगुलथी कांइक (ऊणाई के० ) ऊणो तरो राख्यो होय. ए रीतें पग राखीने (उस्सग्गो ho) काउस्सग्ग करीयें (एसा के० ) ए प्रकारें (पुण के०) वली (जिएमुद्दा ho ) जिनमुद्रा ( होइ के० ) होय ॥ १६ ॥
हवे त्रीजी मुकाशुक्तिमुद्रा कहे . मुत्ता सुत्ती मुद्दा, जसमा दोवि गनिया दवा || ते पुण निलाम्देसे, लग्गा अन्ने अलग्ग ति ॥१७॥ अर्थ :- ( ज ० ) जिहां ( दोवि के० ) बेहुए प ( हा के० ) हाथ ते (समा के० ) सरखा बराबर ( गया ० ) गर्जितपणे राखी ( ते के० ) ते बे हस्त ( पुण के० ) वली ( निलाम से के० ) ललाटना देश एटले ललाटनां मध्य जागने विषे ( लग्गा के ० ) लगाड्या होय, वली ( o ) अन्य एटले बीजा केटलाएक याचार्यों कहे बे के ( अलग्गत्ति ho) लगाया होय एटले ललाटदेशथी दूर राख्या होय. इति एटले ए प्रकारें (मुत्तासुत्ती मुद्दा के०) मुक्ताशुक्तिनामे मुद्रा कहीयें. एमां चंगु लिनां बिs विना जेम मोतीना बीपनो जोको मलेलो होय, तेवा कारें हाथ राखवा, ए मुद्रानुं ए लक्षण बे ॥ १७ ॥
हवे ए त्रण मुद्रा मांहेली कइ मुद्रायें क्रिया करवी. ते कहे बे. पंचगो परिवार्ड, थयपाढो दोइ जोगमुद्दाए || वंद जिएमुद्दाए, पणिहाणं मुत्तसुत्तीए ॥१८॥
अर्थः- एक इछामि खमासमणनो पाठ तेने ( पंचगो परिवार्ड के ० ) पंचांग प्रणिपात कहीयें. बीजो ( थयपाढो के० ) स्तवपाठ ते श्रीजिने श्वरना गुणनी स्तुति जे स्तवनादिकनो पाठ करवो ते ( जोगमुद्दाए ho ) योगमुद्रायें करीने ( होइ के० ) होय, तथा ( वंद के० ) वांद या देवां ने काउस्सग्ग जे अरिहंतचेश्याणं इत्यादि सर्व (जिएमुद्दा एके० ) जिनमुद्रायें करीने थाय, तथा जावंति चेश्याएं, जावंत के वि साहु ने जयवीयराय ए त्रणे ( पणिहाणं के० ) प्रणिधान संज्ञामां
वे. पण इहां ते संप्रदायगत एकज जयवीयरायने कही यें बैयें, ते (मुतसुतीए के ० ) मुक्ताशुक्ति मुद्रायें कहीयें ॥ १८ ॥ इहां श्रीसंघाचार
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