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३नत
प्रतिक्रमण सूत्र. र के ) जिनघर ते देरासरना, त्रीजी (जिणपूया के ) श्रीजिनेश्वरनी पूजानां जे (वावार के०) व्यापार एटले ए त्रणना जे व्यापार तेने (चा य के० ) त्यागवाथकी ( निसिहीतिगं के०) नैषिधिकीत्रिक थाय ते मां प्रथम निसिहि ते पोताना घर, हाट, परिवारादिक संबंधी जे सावध व्यापार ते सर्व निवर्ताववा माटें श्रीजिनमंदिरने (अग्गदारे के० ) अग्र छारें कहे. एटले देरासरनां मूल बारणे दरवाजामां पेसतांज कहे, पण शहां श्रीजिनघरने पूंजवा समारवा संबंधि तथा पूजा संबंधि सर्व व्यापा र आदरे, तथा बीजी निसिही ते जिनघर संबंधी व्यापारथी निवर्त्तवा रूप देरासरनी (मजे के०) मध्य गंजारामां पेसतां कहे, तिहां देरासर पड्या श्राखड्यानी चिंतानो तथा देरासरमां पूंजवादिकनो त्याग करीने अव्यपू जादिकनो प्रारंभ करे, एम सर्व प्रकारनी पूजा विधिसहित साचवी रह्या पड़ी ( तश्याके० ) त्रीजी निसिही जे जिनपूजा संबंधि व्यापारना त्या ग रूप ले ते. जिनपूजा व्यापार त्याग तो ( चिश्वंदणासमए के० ) चैत्य वंदन करवाना अवसरें कहे, यहां अव्यपूजा व्यापार सर्व निवर्त्तावीने कैव ख्य नावपूजारूप चैत्यवंदन स्तवनादिकनो एकाग्र चित्तें करी पाठ करे, ए रीतें त्रण निसिही साचवे.
अथवा मन, वचन अने कायायें करी घरसंबंधी व्यापार निषेधवा रूप त्रण निसिही देरासरना अग्रहारमा कहेवी, अने तेज प्रमाणे मना दिक त्रणे योगें देरासर संबंधी व्यापार त्यागवा आश्रयी त्रण निसिही गंजारामां कहेवी, तथा वली चैत्यवंदनादि कहेवाने अवसरे पण मन वचन कायायें करी जिनपूजा व्यापार त्यागरूप त्रण निसिही कहेवी, ए रीतें दरेक वखतें मन, वचन अने कायाना योगें करी त्रण त्रण नि सिही कहेवी, अथवा दरेक वखतें एकज निसिही कहेवी. परंतु घर सं बंधी देरा संबंधी अने जिनपूजा संबंधी व्यापार निषेध करीयें .यें, एम समजीने देरासरमां पेसतांज त्रणे निसिही कही देवी नहीं. ए तात्पर्य . ए प्रथम निसिहीत्रिक कां ॥ ७ ॥
हवे बीजं प्रदक्षिणात्रिकनुं नाम प्रथम सामान्य नही गाथामां कहेढुं बे, तेनो प्रगट अर्थ डे, माटें जू; वखाएयुं नथी. तथापि चैत्यना दक्षिण जागथी त्रण प्रदक्षिणा देवी, एटले संसारना जवज्रमण टालवा रूप नाव
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