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________________ देववंदना अर्थसदित. ३८५ नायें श्री प्रतिमाजी महाराजनी जमणी बाजुश्री अनुक्रमें ज्ञान, दर्शन ने चारित्रनी आराधना रूप ऋण फेरा फरवा. ए बीजुं प्रदक्षिणा त्रिक कयुं. हवे त्रीजुं प्रणामत्रिक कहे बे. अंजलि-बंधो हो, उ प्र पंचंग प्र तिपणामा ॥ Ras वा तिवारं, सिराइ - नमणे पणाम-तियं ॥ ॥ अर्थः- श्री जिन प्रतिमा देखी वे हाथ जोमी निल्लाडे लगामी प्रणाम करीयें ते प्रथम (अंजलिबंधो के० ) अंजलिबंध प्रणाम कहीयें, तथा क टिदेशथी उपरलुं अर्धं शरीर तेने लगारेक नमामी प्रणाम करीयें, अथ वा ऊर्ध्वादि स्थानकें रह्यां थकां कांइक शिर नमामीयें, तथा शिर करा दि के करी जूमिका पादादिकनुं फरसवुं ते एक अंगथी मांगीने चार अंग पर्यंत नमामनुं ते बीजो ( श्रोर्ड के ० ) अविनत प्रणाम कहीयें, तथा ( o ) वली वे जानु, बेकर ने पांचमुं उत्तमांग ते मस्तक, ए पांच अंग नमामी खमासमण यापीयें, ते त्रीजुं (पंचंग के० ) पंचांग प्रणाम जाणवो. ए ( तिपणामा के० ) त्रण प्रणाम जाणवा. ( वा के० ) अथवा ( सबब के० ) सर्वत्र प्रणाम करवासमये ( तिवारं के० ) त्रण वार ( सिराश्नमणे के० ) मस्तकादिक नमामवे करी एटले शिर, कर, अंजली प्रमुखें कर जे त्रण वार नमन आवर्त्त करयुं ते ( पण मतियं के० ) प्रणामत्रिक जाणवुं. ए त्रीजुं प्रणाम त्रिक कयुं ॥ ए ॥ हवे चोथुं पूजा त्रिक कहे बे. अंगग्गनावभेया, पुप्फादार थुइदं पूयतिगं ॥ पंचोवयारा हो, वयार सोवयारा वा ॥ १० ॥ अर्थ : - ( अंगग्ग के० ) अंगने अग्र एटले पहेली अंगपूजा ने बीजी आगल ढोवारूप अग्रपूजा, तथा त्रीजी चैत्यवंदनरूप (जाव के० ) जा वपूजा एत्रण (नेया के०) नेदथकी अनुक्रमें ( पुप्फादार इहिं के० ) पु ष्पाहारस्तुति जिः एटले पहेली पुष्प केसरादिके ाने वीजी आहार फला दि ढोकने तथा त्रीजी स्तुति करवे करीने (पूयतिगं के ० ) पूजा त्रिक थाय बे. For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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