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________________ देववंदन नाष्य अर्थसदित. ३७ हवे ए चोवीशे झारना उत्तर दनुं स्वरूप अनुक्रमें देखामतो थको प्रथम दश त्रिकोनुं हार कहेतो बतो वे गाथायें करी दश त्रिकोना नाम कहे जे. तिन्नि निसिदी तिन्निड, पयादिणा तिन्नि चेव य पणामा ॥ तिविदा पूया य तहा, अवन-तिय-नावणं चेव ॥६॥ तिदिसि-निरकण-विरई, पयनमि-पमजणं च तिकुत्तो॥ वन्नाश-तियं मुद्दा, तियं च तिविदं च पणिहाणं ॥ ७ ॥ अर्थः-प्रथम देरासरें जातां (तिन्निनिसिही के०) त्रणवार नैषिधिको कहेवी, बीजुं देरासरें (तिनिउ के०) त्रण वली (पयाहिणा के० ) प्रद दिणा देवी, त्रीजी (तिन्नि के) त्रण वार (चेवय के०) ए निर्धार वाच क शब्द ले (पणामा के० ) प्रणाम करीयें, चोथो (तिविहा के ) त्रण प्रकारनी अंगपूजादिक (पूया के) पूजा करवी, पांचमी (य के) वली (तहा के) तथा प्रजुनी पिंडस्थावस्थादिक (अवबतियनावणं के०) अवस्थात्रयनुं नावq जाणवू, ( चेव के) निश्चें ॥ बही चार दिशिमांथी मात्र जगवान् जे दिशियें बेठेला होय तेज एक दिशिनी सामुं जोवू अने शेष (तिदिसिनिरकणविरई के ) त्रण दि शिनी सन्मुख जोवानुं विरमण करवू, सातमी (पयनूमिपमजणं के) पग मूकवानी नूमिर्नु प्रमाऊन ते ( च के ) वली ( तिकुत्तो के ) त्र ण वार करवू, आठमी ( वन्नातियं के ) वर्णादिकना आलंबन त्रण कहेशे (च के० ) वली नवमी (मुद्दतियं के) त्रण मुजा कहेशे, दशमी (तिविहं के०) त्रण प्रकारें (च के ) वली (पणिहाणं के०) प्रणिधा न कहेशे, जे त्रण बोलनो समुदाय तेने त्रिक कहीयें ए दश त्रिकनां नाम कह्यां ॥७॥ हवेप्रथम निसिही त्रण कये कये स्थानकें करवी? ते कहे . घर-जिणदर-जिण-पूया, वावारच्चाय निसिदि-तिगं ॥ अग्ग-दारे मजे, तश्या चिश्-वंदणा-समए ॥ ७ ॥ अर्थः-जे सावध व्यापारनो मन, वचन अने कायायें करी निषेध करवो तेने निसिही कहीये, ते एक पोताना (घर के०) घरनां बीजी (जिणह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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