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परकी प्रतिक्रमणविधि. ३७५ वंदन सकलाऽहत्तुं कहेवू ने थोयो स्नातस्यानी कहेवी. पड़ी खमासमण देश्ने श्छाकारेण संदिसह जगवन् , देवसिथ आलोश्यं पमिकंता श्छा का परिक मुहपत्ती पडिलेडं, एम कही मुहपत्ती पमिलेहियें. पनी वांदणां बे दीजें,पली श्वाकाण्संबुझा खामणेणं अनुहिउहं अप्निंतर परिकथं खा मेलं श्व खामे मि परिस्कयं पन्नरस दिवसाणं पन्नरसराश्याणं जंकिंचि अप त्ति कही श्छाका कही परिकअं आलोएमि छ आलोएमि जो मे प रिक अश्यारोकजे कही श्छाकाण्कही परिक अतिचार आलोजं,एम कहीने अतिचार कहियें पड़ी एवंकारें श्रावक तणे धर्मे श्रीसम कित मूल बा र व्रत एकशो चोवीश अतिचारमाहे जे को अतिहार पद, दिवसमांहे सूक्ष्म, बादर जाणतां अजाणतां हुई होय, ते सवि हुँ मनें, वचनें काया यें करी मिछामि उक्कलं. सबस्सवि,परिकथ, उचिंतित्र,नासिश्र, चिकि अ, श्वाकारेण संदिसह नगवन् ,तस्स मिठा मि उकडं. श्वाकारि नगवन्! पसा करी परिक तपःप्रसाद करोजी. एम उच्चार करीने आवी रीतें क हियें. चउबेणं एक उपवास, बे आयंबिल त्रण निवि, चार एकासणां, आठ बियासणा, बे हजार सद्याय,यथाशक्ति तप करी प्रवेश कस्यो होय तो पर हि कहिये. अने करवो होय तो तहत्ति कहियें. तथा न करवो होय तो अण बोल्या रहियें. पडी बे वांदणां दीजें; पठी श्छाका पत्तेय खामणेणं अप्न हिउहं अप्रिंतर परिकअं खामेलं खं खामेमि परिकरं पन्नरस दिवसाणं पन्नरस राश्याणं जंकिंचि अपत्तियं पली वादणं बे दीजें,पली देवसिझं
आलोश्य पमिकंता श्छाकारेण संदिसह जगवन्, परिकअं पमिकमुं समं पमिकमामि छ एम कही करेमि नंते सामाश्यं कही,श्यामि पमिक मिलं जो मे परिकर्ड कह्या पड़ी ख़मासमण देश श्छाकारेण कही परिकसूत्र पहुँ, एम कही त्रण नवकार गणी साधु होय तो परिकसूत्र कहे, अने साधु न होय तो त्रण नवकार गणीने श्रावक वंदित्तुं कहे,तिहांप्रथम सुअदेवयानी थोय कहेवी. पठी हेग बेसी जमणो ढीचण उन्नो राखी एक नवकार गणी करेमि नंते श्वामि पमिकमिलं कही, वंदित्तु, कहे. पली करेमि नं ते,श्छामि गमि काउस्सग्गं,जो मे परिकर्ड,तस्स उत्तरी, अन्नबण्कहीने बार लोगस्सनो काउस्सग करवो. ते लोगस्स चंदेसु निम्मलयरा सुधी कहेवा, अथवा अमतालीश नवकारनो काउस्सग्ग करीने पारवो. पारीने प्रगट लो
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