SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 394
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७४ प्रतिक्रमण सूत्र. णीने जरदेसरनी सझाय कहीने फरी एक नवकार गणवो. पढी कार सुहराइनो पाठ कहेवो. पी बाका०राइ प्रतिक्रमणे ठाउँ कहीने जमणो हाथ उपधी उपर स्थापी ने इवं सवस्सवि राज्य दुर्चितिय कही ॥ नमुनु तथा करेमि ते कही. इछामि गमि काउस्सग्गं० जोमेराइयो तस्सउ तरी कही एक लोगस्स अथवा चार नवकारनो काउस्सग्ग पारी प्रगट लोगस्स कही, सोए अरिहंत कही, एक लोगस्स अथवा चार नवकार नो काजस्सग्ग पारी पुरकरवरदी सुप्रस्स०वंदण कही, तिचारनी याव गाथानो अथवा या नवकारनो काउस्सग्ग पारी, सिद्धाणं बुद्धाणं कही नेत्रीजा यावश्यकनी मुहपत्ती पहिलेही वांदणां वे देवां त्यांथी ते अहि खामि वांदणां वे दीजें, त्यां सुधी देवसीनी रीतें जाणवुं पण जे गमैं दे वसि यावे ते गमें राश्यं कहेतुं पी आयरिश्र उवझाए करेमि जं ते वामि वामि काउस्सग्गं तस्स उत्तरी कही, तप चिंतामणि करतां न वडे तो चार लोगस्सनो अथवा शोल नवकारनो काउस्सग्ग करवो. ते पारी प्रगट लोगस्स कही, पती उद्या यावश्यकनी मुहपत्ती पमिलेहीने वां दणां देवां, पी तीर्थवंदन कर, पठी यथाशक्तियें पच्चरकाण करवुं पडी इवाकारेण संदिसह जगवन्! सामायिक, चच विसञ्चो, वंदनक, पक्किम, का उस्सग्ग अने पञ्चरका ए व आवश्यक संजारवां- पच्चरका कस्युं होयतो कर बे जी कहे, ने धातुं होय तो धाखुं वे जी ? एम कहेतुं पटी इलामो सहिं नमो खमासमणाणं नमोऽर्हत्०, विशाल लोचन, नमुनु, अरिहं तचेश्याएं एटलां कही एक नवकारनो काउस्सग्ग पारीने नमोऽर्हत्० क ही कल्याणकंदनी प्रथम थोइ कहेवी पठी लोगस्स, पुरकरवर दि, सिद्धाणं बु कही अनुक्रमें चार थोयो कहीयें ढैयें त्यां सुधी सर्व कहेतुं पछी न कही, जगवान् यदि चारने चार खमासमणे वांदवा. पी जमणो हाथ उपधी उपर थापी अठ्ठाइस कहे .पी श्रीसीमंधर स्वामीनुं चैत्य वंदन, स्तवन, जयवीयराय, काउस्सग्ग थोय पर्यंत कर. पी खमासमण पूर्व क श्री सिद्धाचलजीनुं चैत्यवंदन, स्तवन, जयवीयराय, काउस्सग्ग थोय सुधी कर. पी सामायिक पारवाना विधिनी रीतें सामायिक पारवा सु धी कहेतुं ॥ इति ॥ ॥ अथ परिकप्रतिक्रमणनो विधि लिख्यते ॥ ॥ देवसि प्रतिक्रमणमां वंदित्तुं कहियें बैयें त्यां सुधी सर्व कहे, पण चैत्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy