SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 361
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बृहबांतिस्तव अर्थसदित. ३४१ जगत् जे तेने केवलज्ञानें करीने जाणे एवा ने. वली केहवा जे ? तो के (सर्वदर्शिनः के) केवल दर्शनें करीने सर्वने जोवे बे, तथा (त्रिलोकना थाः के०) लोकत्रय जे स्वर्ग, मृत्यु अने पाताल, तेना नाथ एवा, तथा ( त्रिलोकमहिताः के०) पूर्वोक्त त्रण लोकें करी अर्चित एवा, अने वली (त्रिलोकपूज्याः के०) त्रण लोकने पूजन करवा योग्य एवा, तथा ( त्रि लोकेश्वराः के) त्रण लोकना ईश्वर एवा, तथा ( त्रिलोकोद्योतकराः के० ) अज्ञानतिमिरनाशकत्वें करी त्रण लोकना प्रकाशकारक बे. ॐ शषन अजित संनव अभिनंदन सुमति पद्मप्रन सुपार्थ चंप्रन सुविधि शीतल श्रेयांस वासुपूज्य विमल अनंत धर्म शांति कुंथु अर मल्लि मुनिसुव्रत नमि नेमि पार्श्व वईमानांता जिनाः शांताःशांतिकरा नवंतु स्वादा ॐ मुनयो मुनिप्रवरा रिपुविजय निंदकांतारेषु उर्गमार्गेषु रदंतु वो नित्यं स्वाहा ॥ अर्थः-वली ते केहवा बे ? तो के ( शांताः के०) क्रोधादिकना अन्नाव थकी उपशांत थयेला एवा तथा (जिनाः के ) रागादिकना जय कर नारा एवा श्री षनदेवजी जेमां आदि ले तथा ( वर्षमानांताः के०) श्रीवीरस्वामी ने अंतमां जेने एता चोवीश तीर्थंकरो ते (शांतिकराः के०) शांतिना करनारा एवा (नवंतु के ) हो. ( 5 के०) ॐकार मंगलार्थ वाचक जाणवो. तथा (मुनिप्रवराः के) मुनियोने विषे श्रेष्ठ एवा (मु नयः के०) साधु जे जे ते ( रिपुविजय के०) शत्रुकृत परानव, तथा (उर्जिद के० ) उष्काल तथा (कांतारेषु के) चोर कंटकादिकें दूषि तमार्गने विषे तथा (उर्गमार्गेषु के ) अरण्यमार्गने विषे ( वः के) तमोने ( नित्यं के ) निरंतर ( रदंतु के०) रक्षण करो ॥ *ही श्री धृति मति कीर्ति कांति बुद्धि लक्ष्मी मेधा विद्यासाधनप्रवेशननिवेशनेषु सुगृहीत नामानो जयंतु ते जिनेशः॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy