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________________ ३२३ प्रतिक्रमण सूत्र. के०) परतीर्थिक पण (हरिहरा दिधिया के०) विष्णु, महेश्वर अने ब्रह्मादि कनी बुछियें करीने (त्वामेव के०) तमोनेंज (प्रपन्नाः के०) आश्रय करीने रहेला बे,अर्थात् अन्यदर्शनी जे शैव,सांख्य, नैयायिकादिको जे बे, ते पण नामांतर परावर्त करीने तमारुंज श्राराधन करे .ते तमें केहेवा डो? तो के (वीततमसं के०) अज्ञान रहित बो. ही दृष्टांत कहे ,के(ईश के०) हे ईश ! (काचकामलिनिः के०) काचकामलिनामें रोग जे जेनी आंखमां एवा पुरुषो जे ,तेणें (सितोपि के) श्वेत एवो पण ( शंखः के०) शंख जे बे,ते विविधवर्ण विपर्ययेण के०) नील,पीतादिक विविध प्रकारना वर्णपराव ते करीने (किं नो गृह्यते केए) नथी ग्रहण करातो ? एटले ग्रहण करा यज . अर्थात् जेम कमलना रोगवालो पुरुष उज्ज्वल शंखने पण जूदा जूदा वर्णे करी जूवे बे,तेम अन्यतीर्थी पुरुषोयें पण वीतराग एवा जे तमो ते आहरि,आ हर,आ ब्रह्मा,एवी बुछियें करीने आराधन करा ॥रज॥ हवे आठ काव्योयें करी आठ महाप्रातिहार्य सूचनद्वारा लगवाननी स्तुति करे , तेमां प्रथम अशोकवृदातिशयने कहे जे. धर्मोपदेशसमये सविधानुनावा, दास्तां जनो नव ति ते तरुरप्यशोकः॥अन्युजते दिनपतौ समहीरु होपि, किं वा विबोधमुपयाति न जीवलोकः ॥॥ अर्थः-हे स्वामिन् ! (धर्मोपदेशसमये के०) धर्मदेशनाना अवसरने वि षे (ते के०) तमारा ( सविधानुनावात् के०) समीपना प्रजावयकी (जनः के ) लोक जे जे ते तो ( श्रास्तां केण) दूर रहो, परंतु ( तरुरपि के०) वृद जे जे ते पण (अशोकः के०) शोक रहित (नवति के०) थाय . हवे एज वातने दृष्टांतें करीने समर्थन करे डे.(वा के०) अथवा (दिनपतौ. के०) सूर्य जे जे ते (अच्युजते के०) उदय पामे थके (समहीरुहोपि के०) वृदादिकं सहित एवो पण (जीवलोकः के०) जीवलोक जे समस्त जगत् ते ( विबोधं के० ) विकाशत्वने (किं के०) (न उपयाति के० ) न पामे ? अर्थात् पामेज में, एटले जेम सूर्योदय थयाथी केवल लोकज नि मानो त्याग करीने विबोधने पामे वे एटर्बुज नहीं परंतु वनस्पति जे दे ते पण पत्रसंकोचादि लक्षण निझानो त्याग करीने विकाश पणाने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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