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________________ ३१६ प्रतिक्रमण सूत्र. हवे खामीना दर्शन, माहात्म्य कहे . मुच्यतएव मनुजाः सहसा जिनेंज, रौरुपश्वश तैस्त्वयि वीदितेपि ॥ गोस्वामिनि स्फुरिततेजसि दृष्टमात्रे, चौरैरिवाशु पशवः प्रपलायमानैः ॥ए॥ अर्थः-(जिने के०) हे सामान्य केवलीना छ ! (त्वयि के०) तमो (वी दिपिते के०) जोये बते पण ( मनुजाः के०) मनुष्यो (सहसा के०) शीघ्र पणे करीने (रौः के०) नयानक बीहामणा एवा (उपवशतैः के) उपवोना जे शेकमा तेथकी (मुच्यंतएव के०) मुकाइ जाय बेज. आहीं दृष्टांत कहे . जेम केः-(स्फुरिततेजसि के०) देदीप्यमान डे तेज जेनुं ए टले जगत्मा प्रकाश करवे करीने विस्तृत जे तेज जेनुं एवो (गोस्वामिनि के०) गो जे किरणो तेनो खामी जे सूर्य अथवा गो जे पृथिवी तेनो स्वा मी जे राजा ते पण स्फुरित ने प्रताप जेमनो एवो बे, अथवा गो एटले पशु तेनो खामी जे गोवालीयो ते पण बलरूप स्फुरित ने तेज जेनुं ए वो बे. एवा ए त्रण जे जे ते, (दृष्टमात्रे के) दृष्टमात्र एटले जोवाये थके (प्रपलायमानैः के०) पलायन करता नासता एवा (चौरैः के०) चोरो थकी (श्व के०) जेम (आशु के०) शीघ्र उतावला ( पशवः के०) पशु जे गो महिष्यादि चोपगां जनावरो जेम मूकाय , तेम जीवो पण तमो जोवाये थके शेकमो उपलवोथकी मूकाय जे. ए तात्पर्य ॥ ए॥ हवे खामीना ध्यान- माहात्म्य कहे . त्वं तारकोजिन! कथं नविनां तएव, त्वामुहंति हृ दयेन यज्त्तरंतः॥ यहा तिस्तरति यजालमेषनू न, मंतर्गतस्य मरुतः स किलानुन्नावः ॥ १० ॥ अर्थः-(जिन के) हे जिनेश्वर! (त्वं के) तमें (नविनां के)संसारी जीवोना ( कथं के) केम ( तारकः केप) तारक गे? (यत के०)जे कारण माटे उलटा (तएव के०) ते संसारी जीवोज ( उत्तरंतः के०) संसार स मुत्रने उतरता उता (हृदयेन के०) हृदयें करीने ( त्वां के ) तमोने (उ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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